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प्रभु की भक्ति तीन प्रकार से हो सकती है: मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा.

प्रभु की भक्ति तीन प्रकार से हो सकती है: मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा.

 राजेंद्र भावन चेन्नई में विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत प.पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा. के भव्य वर्षावास के इस प्रवचन में परमात्मा नेमिनाथ का जन्म कल्याणक के बरे मे बताया।

   ~ प्रभु की भक्ति तीन प्रकार से हो सकती हैं 1.काया से 2.मन से 3.आत्मा से।

~ प्रभु की अभिषेक की धारा हमारे मन में रहे दू:खो की धारा का नाश करने वाली हो तभी हमारा जीवन सार्थक होगा।

~हमारी भावनाओं में जो नया बल नई रोशनी नया जुनून पूरे वह है भक्ति।

भक्त और भगवान यह दोनों का भेद मिटाकर भक्त स्वयं के भीतर में रहे हुए भगवान को अनुभव करें वह भक्ति।

~परमात्मा को पाने के लिए भक्त के हृदय में सर्वप्रथम भक्ति की जिज्ञासा होना अति आवश्यक है।

~परमात्मा जब हमारे में आते हैं तब दीपक की रोशनी से जैसे अंधकार पूर्ण रूप से क्षय हो जाता है वैसे हमारी आत्मा के अज्ञान रूपी अंधकार का मूलभूत रूप से नाश होता ही है।

~प्रभु नेमिनाथ का जन्म कल्याणक के इस पावन दिन में हमारे मन में भी प्रभु नेमिनाथ जैसी पवित्रता का जन्म होना ही चाहिए ।

~प्रभु नेमिनाथ की प्रीति हमारे में है तो हमारे जीवन में प्रभु से ज्यादा महत्वपूर्ण कभी भी कुछ भी नहीं हो सकता।

~यदि हमारे घर में बालक का जन्म भी खुशियों से भरपूर कर सकता है तो प्रभु का जन्म हमारे भीतर में क्या नहीं कर सकता।

~परम पूज्य प्रभु श्री राजेंद्र सूरीश्वर जी महाराज साहब ने ये जन्म का आनंद स्वयं के जीवन में पाया था।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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