*🏳️🌈प्रवचन वैभव🏳️🌈*
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51)
*जो स्वयं की*
*चिंता करता है,*
उसको ही परचिंता का
परोपकार का अधिकार हैं.!
52)
कर्मक्षय का
पुरुषार्थ ही प्रभु की
सर्वोत्तम भक्ति है क्योंकि
*जीव कर्मबंधन में रहे,*
*वो प्रभु को प्रिय नही है, तो*
प्रभु का प्रिय करना ही भक्ति है.!
53)
संसार से
*अपनेपन की*
आसक्ति तोड़ना ही
साधना की सफलता हैं.!
54)
कर्म
जीव के साथ
संयोग संबंध से
जुड़कर ही दुखी करता है..
कर्म अलग रहकर
न दुखी कर सकता है,
न जीव दुखी होता सकता है,
*संयोग ही दुख का कारण है.!*
55)
यथा संभव
अनुकरण का भाव हो
वही सच्ची अनुमोदना है..
*अच्छा दिखाने सिर्फ*
*वाह वाह करना तो*
*खुशामत है.!*
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*प्रवचन प्रवाहक:*
*मार्गस्थ कृपानिधि*
*सूरि जयन्तसेन कृपापात्र*
श्रुत संस्करणप्रेमी,शिष्यरत्न
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*
श्रीमुनिसुव्रतस्वामी नवग्रह जैनसंघ
@ कोंडीतोप, चेन्नई महानगर