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प्रतीक्षा को प्रतिज्ञा में बदलने का  अवसर है पर्यूषण पर्व: जयधुरंधर मुनि

प्रतीक्षा को प्रतिज्ञा में बदलने का  अवसर है पर्यूषण पर्व: जयधुरंधर मुनि
वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन खचाखच भरे प्रांगण में विशाल जनमेदिनी को संबोधित करते हुए कहा जिस घड़ी का इंतजार लंबे समय से किया जा रहा था वह घड़ी आ चुकी है जिसके आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता है।
लंबे समय की प्रतीक्षा का आनंद कुछ ओर ही होता है। एक महिला का दीर्घकाल तक अपने पति के वियोग का जब संयोग प्राप्त होता है तो उसे बहुत ही खुशी होती है इसी प्रकार पर्यूषण पर्व के आने पर सर्वत्र आनंद की लहर छा जाती है । यह पर्व  प्रतीक्षा को प्रतिज्ञा में बदलने का  अवसर है। आनंद दो प्रकार का बताया है ।
एक पुद्गलानंद और दूसरा आत्मानंद। पुद्गल का आनंद क्षणिक है, नश्वर है क्योंकि पुद्गल का स्वभाव ही है सडन, गलन,  विधवंसन होना, जबकि आत्मा का आनंद शाश्वत है।
पुद्गलानंद भोग की तरफ ले जाता है और आत्मानंद त्याग की ओर ले जाता है।
ऐसे त्याग का पर्व पर्यूषण होता है, जो आठ दिनों का होता है और इन आठ दिनों  में अंतगड सूत्र की  वांचनी की जाती है।
सभी जैन आगमों  में अंतगड सूत्र ही ऐसा है जो पूरे आठ दिनों के अंदर पूर्ण किया जा सकता है। अन्य सूत्र कुछ बड़े हैं, कुछ छोटे हैं ।
इस सूत्र में वर्णित सभी 90 चरित्र आत्माएँ मोक्षगामी बनी।
जम्बू स्वामी के विनम्रता से पूछे जाने पर आठवें अंगसूत्र के भाव आर्य सुधर्मा स्वामी ने बताए जिसकी वांचनी चंपानगरी में हुई थी।
राजा कोणिक चंपानगरी का राज्य करता था परंतु उनके पिता राजा श्रेणिक राजगृही के राजा थे। मुनि श्री ने इसके पीछे छुपे हुए घटना चक्र का उल्लेख करते हुए कहा कोणिक जो अपने पिता को प्रतिदिन 500 कोडीयों द्वारा मारता था वही अंत में अपने दूष् कृतियों पर पश्चाताप करते हुए अंत में बदल जाता है। मुनि ने जन – जन को प्रेरित करते हुए पुत्र का अपने पिता की प्रति कैसे आदर भाव होना चाहिए तथा पिता का क्या कर्तव्य होता है उन सारे रहस्यों का उद्घाटन किया।
इसके पूर्व जयपुरंदर मुनि ने कहा पर्व वही कहलाता है जो आत्मा को पवित्र करें। पर्यूषण आत्मा शोधन एवं आत्म शुद्धि का पावन पर्व है । पर्युषण जैसे आध्यात्मिक, धार्मिक , आत्मिक पर्वों को तप – त्याग पूर्वक मनाने से जीवन में एक नए परिवर्तन की ओर कदम बढ़ जाते हैं।
पर्व और त्योहार में अंतर बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि त्योहार से तीन तरफ से हार होती है धन , शरीर एवं समय की बर्बादी के कारण होते हैं, जबकि आध्यात्मिक पर्व से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होता है। पर्यूषण धर्म जागरण का एक ऐसा पर्व है जिसमें श्रावक- श्राविकाएं सांसारिक प्रवृत्तियों से निवृत्त होकर धर्म आराधना व जप तप में आत्म जागरण हेतु पुरुषार्थरत रहते हैं।
कार्यक्रम का प्रारंभ प्रातः काल 8:30 बजे अंतगड सूत्र वांचन के साथ हुआ जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थित श्रावक – श्राविकाओं ने पुनः उच्चारण करते हुए शास्त्र पठन का लाभ प्राप्त किया।  जयकलश मुनि ने पर्यूषण पर्व पर गीतिका प्रस्तुत की ।  सभा में बड़ी संख्या में बालक – बालिकाएं, युवक – युवतियां, श्रावक -श्राविकाओं ने विभिन्न तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए एवं आठ दिवस के लिए त्याग व्रत अंगीकार किए ।
पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आराधना हेतु बेंगलुरु, होसकोटे, मुंबई, यादगिरी आदि अनेक क्षेत्रों से श्रद्धालु उपस्थित रहे।दोपहर में 2:30 बजे से कल्पसूत्र वांचन के अंतर्गत भगवान महावीर के जीवन चरित्र का सरस विवेचन किया गया । तत्पश्चात ‘मोक्ष का सुहाना सफर’ धार्मिक लिखित प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

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