Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

“प्रतिपल पाप व्यापारों से बचने सावधान रहना चाहिए ” : विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा

(no subject)

सुंदेशा मुथा जैन भवन कोंडितोप चेन्नई में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा ने कहा कि;- हमारा जीवन क्षण भंगुर है । एक छोटे सा उपघात हमारे जीवन का अंत लाने में सक्षम है । ऐसी स्थिति में हमें हर पल जागृत रहना जरुरी है। दुनिया कहती है- युवावस्था मौज – शोक के लिए है , धर्म तो जीवन के अन्तिम वर्षों में करना चाहिए ; परंतु ज्ञानी कहते है, जीवन में एक क्षण का भी भरोसा नहीं है। जब तक शरीर में वृद्धावस्था न आये, जब तक शरीर रोगो से व्याप्त न हो जाये और जब तक अंगोपांग और इन्द्रियाँ सशक्त हैं, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए। जीवन में प्रतिपल हिंसादि पाप व्यापारो से बचने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। संपूर्ण पाप व्यापारों का त्याग मात्र साधु जीवन की आराधना से हो सकता है। श्रावक जीवन में छ :काय के जीवों का हनन किये बिना एक दिन भी व्यतीत नहीं होता है। फिर भी यतना धर्म के द्वारा दिन भर के पाप व्यापारो का संक्षेप कर सकते है। दुनिया के लोग यही मानते है कि जिस पाप व्यापार में हम प्रवृति करते है , उन पाप व्यापारो का ही पाप कर्म का बंध होता है, परंतु प्रतिज्ञा के अभाव में पापाचरण न करे तो भी पाप कर्म का बंध होता है। जैसे मकान में बिजली का कनेक्शन करने के बाद जब तक उसे स्थगित न करे , तो बिजली का बिल अवश्य चुकाना पड़ता है। यदि न चुकाये तो सजा होती है।वैसे ही अतिरिक्त पाप व्यापार की प्रतिज्ञा बिना भी पाप कर्म का बंध होता रहता है। दिन भर में अति आवश्यक भोजन , व्यापार, यातायात आदि कार्यों से अतिरिक्त दुनिया के अन्य पाप व्यापारों का त्यागकर हम यतना धर्म का पालन सहजता से कर सकते है। यतना धर्म के पालन से हम सागर जितने पाप कर्मो को अति परिमित कर सकते है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar