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प्रतिकूलता को भी प्रभु की कृपा मानें: क्षमाराम महाराज

प्रतिकूलता को भी प्रभु की कृपा मानें: क्षमाराम महाराज

हावड़ा. भगवान की लीलाएं कहां से प्रारंभ और कहां समाप्त होती हैं उसका कुछ पता नहीं. विदुर के पूछने पर मैत्रिय जी कहते हैं कि भगवान का स्वरूप समझने पर भगवान की लीलाएं समझ में आ जाती हैं. संसार और परमात्मा दोनों एक हैं. जो दो मानता है वह अज्ञानी है.

घड़े को देखकर बच्चा मां से पूछता है कि इसमें मिट्टी कहां है पर जो ज्ञानी हैं वह समझते हैं कि घड़ा और मिट्टी दोनों एक ही है. बालक की तरह हम हैं जो संसार और परमात्मा को अलग-अलग समझते हैं. ज्ञानी और महात्मा ऐसा नहीं समझते. जीवन में अनुकूलता और सुख आए तो उसे भगवान के रूप में देखें पर प्रतिकूलता और दुख आए तो उसे भी भगवान की कृपा ही मानें.

राम सर्वज्ञ हैं पर रावण से युद्ध करने से पहले सभी से शांति का उपाय पूछते हैं. तब जामवंत जी कहते हैं कि जब आप पूछ ही रहे हैं तो अंगद को दूत बनाकर भेजें. अंगद ने रावण के पूछने पर कहा कि वह जो छोटा बंदर हनुमान आया था वह आकर लंका जला दिया. जबकि उसे यह कहा ही नहीं गया था.

इसलिए समझिए कि हमारे पास कैसे-कैसे योद्धा हैं. अंगद ने यह बात झूठ कही. पर यह झूठ, झूठ नहीं है. जहां स्वार्थ की बात में झूठ बोला जाये वह झूठ है पर जहां भगवान की प्रशंसा में झूठ बोला जाये वह झूठ नहीं है. मंदोदरी और कुंभकर्ण, दोनों में विवेक है और दोनों ही रावण को राम से युद्ध करने से मना करते हैं. पर मंदोदरी का विवेक श्रेष्ठ है.

कुंभकर्ण अपने गलत खानपान के चलते अविवेकी कार्य करता है. मंदोदरी रावण से कहती है कि सीता को ही लाना था तो सीता के स्वयंवर में गये थे, जीत कर क्यों नहीं आए? चोरी और सीनाजोरी की बात करते हैं. खर, दूषण और बाली को मारकर राम ने जो चुनौतियां दी हैं क्या वह समझ में नहीं आती? अंगद आया और पैर जमाकर चला गया उस वक्त आपका बल कहां था?

बात कोई ऊंची क्यों न करे पर बुरी संगति के चलते वह गलत व्यवहार करने लगता है. जरूरी है कि हम सज्जनों की संगति करें. सज्जन ही अच्छे कार्य करते हैं. उनके कार्य में अनेक बाधाएं आती हैं. जीवन में बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए. निरंतर सत्कर्म करते रहना चाहिए.

ये बातें हावड़ा सत्संग समिति के तत्वावधान में सिंहस्थल पीठाधीश्वर क्षमाराम महाराज ने श्रीरामचरितमानस पाठ का परायण करते हुए हावड़ा हाउस में कही. इस अवसर पर राज्य के खेल राज्य मंत्री लक्ष्मीरतन शुक्ला, संतराम पाल, मनमोहन मल्ल, पुरुषोत्तम पचेरिया, पवन पचेरिया, हरिभगवान तापड़िया, महावीर प्रसाद रावत, चंपालाल सरावगी व अन्य मौजूद थे.

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