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प्रज्ञापुरुष आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समारोह का अद्वितीय शुभारम्भ

प्रज्ञापुरुष आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समारोह का अद्वितीय शुभारम्भ

रहुतनहल्ली, बेंगलुरु (कर्नाटक): ऐसे साधक, जिनकी साधना से कितने साधकों की राह प्रशस्त हुई, ऐसे दार्शनिक जिनके चिन्तन ने मानवता को इतने अवदान दिए, जिसके कारण वे संपूर्ण विश्व पटल पर स्थापित हो गए। वे धर्मातित हो गए और संपूर्ण मानव जाति के लिए सर्वमान्य हो गए। ऐसे महापुरुष, जिनकी प्रज्ञा इतनी जागृत हुई उन्हें सर्वमान्य रूप में ‘महाप्रज्ञ’ हो गए।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ऐसे युगप्रधान आचार्य महाप्रज्ञजी के जन्म शताब्दी समारोह का भव्य शुभारम्भ रविवार को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु महानगर के भिक्षुधाम परिसर में उनके परंपर पट्टधर अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भव्य रूप में समायोजित हुआ। 

भिक्षु का धाम, शांतिदूत की प्रेरणा और युगप्रधान के जन्म शताब्दी का आध्यात्मिक शुभारम्भ 
कर्नाटक राज्य की राजधानी और भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अग्रणी केन्द्र के रूप में स्थापित बेंगलुरु महानगर टुमकुर रोड के पास स्थित तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के नाम पर स्थापित भिक्षु धाम के परिसर में अहिंसा यात्रा प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन प्रेरणा और मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जन्म शताब्दी समारोह का भव्य शुभारम्भ होने जा रहा था।

इसके लिए रविवार की प्रातः की नव प्रभात के साथ ही इस परिसर में बने ‘भिक्षु महाप्रज्ञ समवसरण’ में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थित में आचार्यश्री मंच पर पधारे। मंच से आचार्यश्री ने सर्वप्रथम ‘महाप्रज्ञ अष्टकम’ का उच्चारण जन्म शताब्दी समारोह का शुभारम्भ किया। इसके पश्चात् आचार्यश्री ने गुरु के प्रति अपनी विनयांजलि समर्पित करते हुए स्वरचित गीत का संगान किया। इस प्रकार अध्यात्म जगत के शिखर महापुरुष के जन्म शताब्दी समारोह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री ने इस वर्ष को ‘ज्ञान चेतना वर्ष’ नाम प्रदान करते हुए लोगों को अपनी चेतना को जागृत करने का पावन पाथेय प्रदान किया। तत्पश्चात् आचार्यश्री विजडम पिनाकल में पधारे। मंगल महामंत्रोच्चार के साथ उक्त गैलरी का शुभारम्भ हुआ।

 
आज का मुख्य प्रवचन कार्यक्रम भले ही नौ बजे से आरम्भ होना था, किन्तु श्रद्धालुओं का हुजूम प्रातः से ही उमड़ा हुआ था। नौ बजे से पूर्व ही पूरा पंडाल ही नहीं पूरा परिसर जनाकीर्ण बना हुआ था। निर्धारित समय पर आचार्यश्री ‘भिक्षु महाप्रज्ञ समवसरण’ में पधारे तो पूरा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के श्रीमुख से महामंगल मंत्रोच्चार हुआ। कार्यक्रम में भारत के पूर्व गृहमंत्री श्री शिवराज पाटिल व श्रमणबेलगोला के स्वस्ति श्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामीजी भी उपस्थित थे। इसके उपरान्त बालक-बालिकाओं व महिला व पुरुषों को मिलाकर लगभग 100 लोगों ने महाप्रज्ञ अष्टकम का संगान किया। श्री रवि नाहटा व उनके साथियों ने गीत का संगान किया। महासभा के पूर्व अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र चोरड़िया, वरिष्ठ श्रावक श्री सुमति गोठी, चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-बेंगलुरु के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, स्वागताध्यक्ष श्री नरपतसिंह चोरड़िया व भिक्षुधाम के अध्यक्ष श्री धर्मीचंद धोका ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। साधु-साध्वीवृंद तथा समणीवृंद द्वारा गीतों के माध्यम से अपनी भावांजलि समर्पित की। 

मानवता का परम सौभाग्य, जिन्हें ऐसे महापुरुषों से मिलता है पाथेय: आचार्य महाश्रमण 
अहिंसा यात्रा के प्रणेता, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समारोह के संदर्भ में अपनी मंगल संदेश प्रदान करते हुए कहा कि हमारे धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता आचार्य महाप्रज्ञजी के जन्म शताब्दी समारोह का शुभारम्भ हुआ है। यह मानवता का मानों सौभाग्य है जो समय-समय पर ऐसे महापुरुषों का जन्म होता है जो संपूर्ण मानवता को अपने प्रकाश से ज्योतित कर जाते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ज्योतिपुंज थे, जिन्होंने मानवता को आलोकित किया। आचार्यश्री ने इस शताब्दी वर्ष को ज्ञान चेतना वर्ष का नाम के साथ एक घोष दिया जो इस प्रकार है-ज्ञान चेतना करे प्रकाश, जागे संयम में विश्वास। 

आचार्य महाप्रज्ञजी को मैं भगवान कहता हूं: कर्नाटक राज्यपाल 
समारोह में उपस्थित कर्नाटक के राज्यपाल श्री वज्जूभाई वाला ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञजी की प्रज्ञा से जितने साहित्य प्रकाशित हुए हैं, उनका प्रसार संपूर्ण विश्व में हो। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के ज्ञान को अपने जीवन में चरितार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य महाप्रज्ञजी को तो मैं भगवान मानता हूं, जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए जीवन समर्पित कर दिया। राज्यपाल ने आगे कहा सारी दुनिया में भगवान महावीर की विचारधारा को फैलाने का प्रयास आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा किया जा रहा है। 

अनेक आयोजनों की हुई घोषणा 
आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समारोह समिति के अध्यक्ष व महासभा के अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए इस शताब्दी वर्ष में आरम्भ होने वाले विभिन्न आयोजनों की घोषणा की। 

जब प्रवचन पंडाल में पहुंचे 100 महाप्रज्ञ 
किशोर मंडल-बेंगलुरु के 100 किशोर आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के मुखौटे लगाए और श्वेत वस्त्र धारण किए हुए पहुंचे तो पूरा परिषद देखते ही रह गया। ये सभी किशोर अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार तपस्या भी की थी। सभी को आचार्यश्री ने उनकी धारणा के अनुसार त्याग कराया। 

अद्वितीय संत से आचार्य महाप्रज्ञ: असाधारण साध्वीप्रमुखा 
तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा साध्वी कनकप्रभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज कुसाग्र मेधावाले, प्रज्ञावान महापुरुष के जन्म शताब्दी का शुभारम्भ हुआ है। उन्होंने शताब्दी वर्ष की सार्थकता प्रकाशित करते हुए कहा कि शताब्दी संघ को चिरस्थाई बनाने के लिए और अतीत के गौरव का गान कर भावी पीढ़ी को सुसंस्कारित बनाने का प्रयास है। आचार्य महाप्रज्ञजी कवि, वक्ता, दर्शनिक, साहित्यकार थे। उनका नाम सभी के मुख पर रहता था। वे अद्वितीय महापुरुष थे।

 
आचार्य महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व और कर्तृत्व अवर्णित 
मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ राष्ट्रसंत नहीं, विश्व संत थे। वे अध्यात्म जगत के देदीप्यमान महासूर्य थे। आचार्यश्री का व्यक्तित्व और कर्तृत्व का वर्णन नहीं किया जा सकता। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की ‘पहचान जैन श्रावक की’ अंग्रेजी में अनूदित पुस्तक श्रीचरणों में समर्पित की। इस पुस्तक को जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अरविन्द संचेती, न्यासी श्री मनोज लुणिया, श्री धर्मीचंद लुंकड़ व श्री सुरेन्द्र चोरड़िया आदि ने आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की। 

महात्मा महाप्रज्ञ के लिए भारत रत्न की उपाधि भी कम: स्वस्ति श्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी 
श्रवणबेलगोला के स्वस्ति श्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञजी के जन्म शताब्दी का शुभारम्भ कर्नाटक की धरती पर हुआ है। मैं सर्वप्रथम कर्नाटक की धरती पर पधारने वाले संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत करता हूं। आचार्य महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान के रूप में मानव समाज के नवीन अनुदान दिया। वे इतने महान दार्शनिक थे कि यदि उन्हें भारत रत्न की उपाधि दी जाए तो वह भी उनकी प्रज्ञा के समक्ष कम है। भट्टारक स्वामीजी ने एक कन्नड़ भाषा का साहित्य आचार्यश्री को समर्पित करते हुए आचार्यश्री को स्वर्णबेलगोला में पधारने की प्रार्थना की। 

महाप्रज्ञ का साहित्य कल्याणकारी: शिवराज पाटिल 
भारत के पूर्व गृहमंत्री श्री शिवराज पाटिल ने कहा कि सर्वप्रथम ऐसे पवित्र कार्यक्रम में उपस्थित हुआ हूं, इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूं। आचार्यश्री को वंदन करने के पश्चात् उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञजी के दर्शन करने का मुझे बहुत बार सौभाग्य मिला। मैं जब भी मिला वे बोलते कम थे, लेकिन लिखते ज्यादा थे। इस कारण आज उनके कितने साहित्य प्रकाशित हैं। उन साहित्यों का भारत की हर भाषा में अनुवाद हो तो ज्यादा से ज्यादा लोगों का कल्याण हो सकता है। इसके उपरान्त पूर्व एम.एल.सी. श्री ई. कृष्णप्पा ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। 

महापुरुषों की जन्म शताब्दी से लोगों का हो सकता है कल्याण: महातपस्वी महाश्रमण 
इस अवसर पर आचार्यश्री ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी और महानुभावों को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारी चेतना में शुद्ध स्वरूप और अशुद्ध विरूपता भी आत्मा में विराजमान होती है। आदमी के भीतर जो शुद्ध चेतना होती है, वह ज्योतिर्मय होती है, इसके कारण ज्ञान और आनंद आवृत हो जाता है। शुद्धता की शक्ति क्षयोपशम भाव से अशुद्धता से लड़ती है। अशुद्धता को दूर करने के लिए ज्ञान चेतना की आवश्यता होती है। ज्ञान चेतना की निरंतर विकास होने से पूर्ण शुद्धता भी आ सकती है।

आज से 99 वर्ष पूर्व राजस्थान के टमकोर में आचार्य महाप्रज्ञजी का जन्म हुआ। साढ़े दस वर्ष की अवस्था में अष्टमाचार्य कालूगणी के हाथों दीक्षित हुए। उन्हें उनका सान्निध्य मिला और मुनि तुलसी जैसे प्राध्यापक प्राप्त हुए। वे कभी स्कूल, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय में नहीं पढ़े, किन्तु उनमें ज्ञान का विशेष विकास हुआ और वे महाप्रज्ञ हो गए। आचार्यश्री ने श्रीमद् भगवद्गीता के विभिन्न श्लोकों माध्यम से आचार्य महाप्रज्ञजी के स्थितप्रज्ञ आदि और उनके गुणों का बखान करते हुए कहा कि जिस प्रकार गीता में अठारह अध्याय है, उसी प्रकार आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा लिखित ग्रंथ सम्बोधि में सोलह अध्याय हैं।

कोई इसे कंठस्थ करे तो ज्ञान का अच्छा विकास हो सकता है। महापुरुषों का जन्म शताब्दी मनाने से लोगों का कल्याण हो सकता है। आचार्यश्री ने कहा इतने लोगों से मिलना हो गया। चतुर्मास के बाद स्वर्णबेलगोला पधारने की घोषणा की तो पूरा प्रवचन पंडाल जयकारों से गूंज उठा। इसके उपरान्त अभातेयुप द्वारा ‘तेरापंथ टाईम्स’ के विशेषांक को श्रीचरणों में समर्पित किया।

अभातेयुप के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया, महामंत्री संदीप कोठारी, श्री पवन मांडोत ने आचार्यश्री के श्रीचरणों में समर्पित किया। थार एक्सप्रेस, व अन्य पुस्तकों, अमृतवाणी की पेनड्राइव आदि भी संबंधित संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा श्रीचरणों लोकार्पित की गईं। आचार्यश्री ने पुस्तकों के संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री दीपचंद नाहर ने आभार ज्ञापित किया। मुनि दिनेशकुमारजी ने कार्यक्रम का संचालन किया।

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