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प्रकृति के समान जीवन में भी नियमबद्धता जरूरी : आचार्य देवेंद्रसागरजी

प्रकृति के समान जीवन में भी नियमबद्धता जरूरी : आचार्य देवेंद्रसागरजी

अक्कीपेट में हुआ वासुपूज्य धर्ममॉल का भव्य आयोजन

बेंगलुरु। यहां अक्कीपेट जैन संघ में आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी म.सा. एवं साध्वी श्री मोक्षज्योति श्री जी म.सा. आदि ठाणा की शुभ निश्रा में वासुपूज्य धर्ममॉल का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें बाल-वृद्ध सभी उत्साह के साथ सम्मिलित हुए। इस धर्ममॉल के अभूतपूर्व आयोजन में अक्कीपेट जैन धार्मिक पाठशाला के विद्यार्थियों का विशेष सहयोग रहा।

धर्ममॉल के अंतर्गत प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा कि एक व्यवस्थित जीवन जीने के लिए जीवन में नियमों का पालन अपरिहार्य है। नियमरहित जीवन एक अवस्था के बाद भार में परिवर्तित हो जाता है। उन्होंने कहा कि नियम के बगैर इस संसार में कुछ भी चलायमान नहीं है।

सूर्य नित्य बिना किसी आलस्य और व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा के बगैर निरंतर हर दिन उगता है और चंद्रमा भी स्थितप्रज्ञ के समान अपने हिस्से की चांदनी बिना किसी रोक-टोक के बिखेरता है। प्रकृति का सब कुछ नियमबद्ध है और जब यह नियमबद्धता टूटती है, तब प्रकृति का सुंदर हरा-भरा कलेवर भी हमें रास नहीं आता।

अचार्यश्रीजी बोले, जब प्रकृति नियमों पर इतनी अडिग है तो भला वह मनुष्य को उच्छृंखल होने के लिए कैसे छोड़ सकती है? प्रकृति जब अपने नियम से हटती है तब विकराल घटनाएं घटती हैं और विध्वंस होता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के समान ही जीवन में भी नियमबद्धता आवश्यक है।

किसी भी प्रकार का सृजन नियम के बगैर नहीं हो सकता। आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार कर चुका है कि पृथ्वी ही नहीं बल्कि ग्रह, नक्षत्रों और आकाश गंगाओं या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो समूचा ब्रम्हांड नियमों से ही संचालित हो रहा है।

देवेंद्रसागरसुरीजी ने कहा कि ग्रह-नक्षत्र एक सुनिश्चित नियम के अनुसार ही अपनी-अपनी कक्षाओं में परिभ्रमण कर रहे हैं। इसी तरह मनुष्य को भी यम नियम का पूर्णतय पालन करते हुए जीवन यापन करना चाहिए अन्यथा वर्षा ऋतु में उफनती नदी के समान जीवन व्यर्थ ही प्रवाहित होता रहेगा।

गुरुभक्त मुकेश वेदमूथा ने बताया कि बेंगलुरु में आचार्यश्री की निश्रा में धर्ममॉल विषयक नियम पालने का अनूठा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। बड़ी संख्या में बच्चों व महिलाओं ने भागीदारी निभाई।

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