दादावाड़ी में विराजित साध्वी कुमुदलता ने कहा पौषध करना यानी आत्मा का पोषण करना। आजकल सब शरीर का पोषण करते हैं। इन आठ दिनों में आत्मा का पोषण करें। सामायिक प्रतिक्रमण पौषध करें। जिस तरह हार्ट सर्जरी करते हैं,उसी तरह पौषध से आत्मा की सर्जरी होती है। इन आठ दिनों में इंद्रियों को ब्रेक दें।
भगवान महावीर ने पर्यूषण की दो जरूरी बातें बताई है सामयिक और पौषध। स यानी साधना-समता की साधना करें, म यानी ममता को छोडं़े। य अर्थात यतना, जीवन में यतना से चलें। क यानी करुणा-सभी जीवों के प्रति दया रखें। दूसरा है पौषध- यह दो प्रकार की होती है-देशा बगासिक और प्रतिपूर्ण पौषध।
जिस प्रकार पाटे के चार पायों में से एक पाया नहीं होने से पाटा डगमगाने लगता है इसी तरह डगमग जीवन को संतों के समागम से स्थिर बनाएं।
हमारे जीवन से आदर्श और मर्यादा गुम हो गई है। यह हमें समझ नहीं आ रहा है कि हमारा जीवन बनावटी हो गया है। संसार में आनंद सुख नहीं है। भक्ति का एक छोटा सा दीपक जलाएं आपका जीवन संवर जाएगा।
आजकल सब भविष्य सुधारने में व्यस्त हैं इस बात से अनजान कि अगर वर्तमान सुधार लिया तो भविष्य भी सुधर जाएगा। जीवन का महत्व जो नहीं समझता वह जीवन भर भटकता रहता है।