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पेंसठिया छंद का भव्य अनुष्ठान

पेंसठिया छंद का भव्य अनुष्ठान

माधावरम्, चेन्नई ; श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम ट्रस्ट के तत्वावधान में मुनि श्री सुधाकरकुमारजी एवं मुनि श्री नरेशकुमारजी के सान्निध्य मे जय समवसरण में नवरात्रि के अंतर्गत 108 पेंसठिया छंद एवं यंत्र का विशेष अनुष्ठान हुआ।

  मुनि श्री सुधाकरजी ने बीज मंत्रों के साथ अनुष्ठान कराया। जैन तेरापंथ नगर की बहनों ने सुमधुर स्वरों में पेंसठिया छंद का निरंतर संगान किया। लगभग 2 घंटे तक चले इस अनुष्ठान में 225 से अधिक भाई बहनों ने भाग लियाl अनुष्ठान प्रभावक रहा।

मुनिश्री ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि समय परिवर्तनशील है। किसी के जीवन में एक सरीखी परिस्थितियां नहीं रहती है। उत्थान-पतन व सुख-दु:ख की लहरें उत्पन्न होती रहती हैं। धर्म ग्रंथों में बतलाया है, हमें अनुकूल और प्रतिकूल दोनों क्षणों में “यह भी सदा नहीं रहेगा” का मंत्र याद करना चाहिए। सुख में सोचे यह भी सदा नहीं रहेगा, तो अभिमान करना भूल जायेगा। दु:ख में सोचें, सुख सदा नहीं रहा तो दु:ख भी सदा नहीं रहेगा, इस विचार से निराशा की लहर दूर हो जाएगी। मुनिश्री ने आगे कहा मनुष्य जितना बीमारी से बीमार नहीं होता है, उतना बीमारी का बार-बार स्मरण करने से बीमार होता है। जब कोई भी बीमारी और समस्या दिमाग पर हावी हो जाती है, तो उससे छुटकारा नहीं मिल सकता, हमें प्रतिदिन मै स्वस्थ हूँ, मैं आनंद में हूँ, इस प्रकार का पवित्र चिंतन करना चाहिए, इससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी।

मुनिश्री ने आगे कहा भगवान महावीर ने अकाल मृत्यु के जो सात कारण बताए हैं। उनमें भावेश की तीव्रता एक प्रमुख कारण है। आवेश के कारण शरीर और मस्तिष्क पर बहुत हानिकारक प्रभाव होता है। आज हर मनुष्य का जीवन व्यस्त है। सबके सामने नाना प्रकार की चुनौतियां हैं। इस स्थिति में सहजता से जीने का अभ्यास जरूरी है। मनुष्य कर्तव्य का पालन करते हुए भी परिणाम सम्मुख उपस्थित होता है, उसे प्रसन्नता से स्वीकार करना चाहिए। जो मनुष्य अपने को सर्वशक्तिमान समझते हैं, उनका चिंतन सही नहीं है। सभी शरीरधारी प्राणियों की सीमाएं हैं। यदि हम उन सीमाओं को समझते तो सब प्रकार के भावावेश पर विजय पा सकते हैं।

  समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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