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पूर्ण श्रद्धा, समर्पण से होती है जिन धर्म की प्रभावना: साध्वी कंचनकंवर

पूर्ण श्रद्धा, समर्पण से होती है जिन धर्म की प्रभावना: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व  साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि  प्रभु ने कहा है- धार्मिक बनो। इससे विवेक, क्षमा, सहिष्णुता सभी गुण स्वत: आ जाएंगे। इसके लिए पहले समकित प्राप्त करें, यह सम्यकदर्शन का बीज है।  जिस प्रकार मनुष्य में आत्मा और हमारी दृष्टि समकित रत्न प्राप्त करने की होनी चाहिए।

पांचवें आरे में यह दुर्लभ है पर असंभव नहीं। जिससे जिनशासन धर्म की प्रसिद्धि हो वह प्रभावना है।  जिनशासन की प्रभावना के लिए अरिहंतों का उपकार है जो हमें जिनवाणी मिली है, सिद्धों का आधार, आचार्यों का आचार-व्यवहार, उपाध्यायों का ज्ञान-चिंतन और साधुओं का विहार होता है।

धर्म के प्रचा के आठ प्रकार बताए हैं। प्रवचन से सिद्धांतों का ज्ञान होता है, जिसे सुनकर कितनी ही आत्माएं जाग्रत होती है। कथा से पू.जयमल महाराज की तरह अनेक भवि जीव तिर गए। वाद से धर्मसिद्धांतों को सटिकता और प्रमाणिकता के साथ दूसरों के सामने प्रचार और प्रसार होता है।

जब ज्ञान होगा तभी उसका वाद या चर्चा कर सकते हैं। जिनधर्म के तत्वसिद्धांतों का ज्ञान हमें होना चाहिए। भगवान महावीर के तीन सिद्धांत अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जीवन में आ जाएं तो विश्वशांति हो जाए। जीव मात्र के प्रति दया, प्रेम भावना रखना अहिंसा है। जितनी इच्छाएं सीमित होंगी व्यक्ति सुखी होगा।

प्रभु ने चार पुरुषार्थ में धन का भी महत्व बताया है लेकिन नैतिकता से ही धनोपार्जन करें। जो मैं कहता हंू वही सत्य है ऐसा दुराग्रह छोड़कर सामनेवाले की बात भी सही है मानना अनेकांत है, इससे सभी मित्र बन जाएंगे। निमित्तों को जानना और आवश्यकता होने पर ही उनका उपयोग करना जिनशासन की प्रभावना है। स्वार्थ के लिए साधना सिद्धी का उपयोग नहीं करना। जिनधर्म पर पूर्ण श्रद्धा, विश्वास, समर्पण हो तभी प्रभावना कर सकते हैं।

पारसमल तोलावत ने स्वस्थ व प्रसन्न जीवन जीने और ऐलोपैथिक दवाएं छोड़कर बिना दवा चिकित्सा के विषय पर विशेष व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि आत्मचिंतन करने और प्रसन्न रहने से अनेकों बीमारियां ठीक हो जाती है। जो परेशानियां हैं उनका चिंतन करें और स्वयं ही समाधान खोजेंगे तो अनेकों समस्याएं दूर हो जाएंगी। शरीर के लिए भोजन, पानी और हवा सबसे बड़ी औषधि है।

इसकी शुद्धता पर पूरा ध्यान देना होगा। निस्वार्थभाव से सेवा करना, माह में दो दिन चौविहार उपवास करना, दिनचर्या को व्यवस्थित करने, छोटी-छोटी बातों में तनाव नहीं लेना और पूरी नींद लेना निरोगी शरीर के लिए आवश्यक है। पश्चिम दिशा में सामूहिक तेरह लोगस्स साधना करवाई गई।

धर्मसभा में उगमराज चोरडिय़ा ने उत्तरमेरूर संघ की ओर से अर्चना सुशिष्यामंडल से होली चातुर्मास की विनती रखी। जोधपुर, उत्तरमेरूर, दुर्ग, इंदौर, महाराष्ट्र से श्रद्धालु आए।

9नवम्बर को चातुर्मास समिति द्वारा चातुर्मास काल में सभी समितियों, सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के प्रति आभार ज्ञापन और दोपहर संगीत अंताक्षरी प्रतियोगिता होगी। १० नवम्बर को उड़ान टीम द्वारा भिक्षुदया कार्यक्रम होगा।

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