पांच दिवसीय कार्यक्रमों में सोमवार को मनाया गया दान दिवस, आज मनेगा तप दिवस
Sagevaani.com @शिवपुरी। स्थानकवासी जैन समाज के द्वितीय पट्टधर आचार्य आनंद ऋषि जी महाराज साहब का 123वां जन्मदिवस प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के सानिध्य में शिवपुरी में पूर्ण उत्साह, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। जन्मोत्सव के पांच दिवसीय कार्यक्रमों में आज दान दिवस मनाया गया जिसमें भक्तगणों ने जीव दया, औषधि वितरण, ज्ञानदान आदि उपकरणों के लिए दिल खोलकर दान किया। भक्तगणों की दान भावना की साध्वी रमणीक कुंवर जी और साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने सराहना करते हुए उन्हें साधुवाद दिया। उन्होंने कहा कि दान आगामी जन्म के लिए बैंक बैलेंस है। दान से परिग्रह भावना का ह्रास होता है और संचय प्रवृत्ति से मुक्ति मिलती है। आराधना भवन में आज पयूर्षण पर्व का दूसरा दिन था और साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कल्प सूत्र का वाचन करते हुए साधार्मिक भक्ति और अठ्ठम तप तथा क्षमा के लाभों से श्रोताओं को अवगत कराया।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने धर्मसभा में कहा कि आचार्य आनंद ऋषि जी महाराज के जन्मोत्सव के पांच दिवसीय कार्यक्रमों में श्रावक और श्राविकाओं का उत्साह देखने के लायक है। प्रथम दिन सामयिक दिवस मनाया गया जिसमें 65 श्रावक और श्राविकाओं ने कम से कम दो सामयिक कर समता व्रत को धारण किया। दूसरे दिन जाप दिवस में आधा सैकड़ा से अधिक जोड़ों ने भाग लेकर आचार्य आनंद ऋषि जी के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया। धार्मिक कार्यक्रमों के तीसरे दिन वंदना दिवस में 65 श्रद्धालुओं ने गुरूणी मैया रमणीक कुंवर जी को प्रतीक मानकर अपने-अपने गुरू की कम से कम 27 से लेकर 200 बार वंदन किया। दान दिवस पर भी श्रावक और श्राविकाओं ने दिल खोलकर पीडि़त मानवता के लिए दान दिया। उसकी जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। उन्होंने कहा कि दान से 18 पापों से कमाए गए धन का सदुपयोग और शुद्धिकरण होता है। दान करने से व्यक्ति परिग्रह से मुक्ति मिलती है और तृष्णा कम होती है।
साधार्मिक भक्ति से समाज में खत्म होगी गरीबी
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने धर्मसभा में देश से गरीबी हटाने का अचूक मंत्र बताया। उन्होंने कहा कि समाज के हर वर्ग में साधार्मिक भक्ति की भावना आएगी तो इससे देश को गरीबी के अभिशाप से मुक्ति मिलेगी। उन्होंने दो उदाहरण देते हुए अपनी भावना को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि धार के पास मांडु में एक जमाने में एक लाख जैन परिवार रहते थे। उस गांव में यदि कोई जैन भाई आता था तो वहां के निवासी उसे एक-एक रूपया और दो ईंट देते थे जिससे वहां आने वाला व्यक्ति लखपति बन जाता था और वह ईंटों से अपने आवास का निर्माण कर लेता था। उसी तरह राजस्थान के पाली में भी तीन लाख जैन परिवार थे वह वहां रोजगार के लिए आने वाले साधार्मिक भाई को एक रूपया और एक ईंट देते थे जिससे वहां आने वाले व्यक्ति को तीन लाख रूपए और तीन लाख ईंटें मिल जाती थीं। महाराजा अग्रसेन के जमाने में भी ऐसी ही प्रथा थी। यदि हम अपने भाई की टांग खींचने के स्थान पर उसे आगे बढ़ाने की भावना रखेंगे तो देश में गरीबी कहां रहेगी।
क्षमा मांगना आसान है देना नहीं है सरल
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कल्पसूत्र में वर्णित क्षमा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि क्षमा वीरों का आभूषण है। क्षमा मांगने वाले और क्षमा देने वाले दोनों ही महापुरुष होते हैं। हालांकि क्षमा मांगने की अपेक्षा क्षमा देना उतना सरल नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि हम किसी के प्रति कोई गलत भावना या रंजिश रखते हैं तो उसे हम भूल जाते हैं, लेकिन यदि कोई हमारे प्रति विरोधी भावना रखता है तो उसे जीवन भर याद रखते हैं। उन्होंने कहा कि क्षमा मांगो तो सच्चे दिल से मांगो। क्षमा वहीं व्यक्ति मांग सकता है जो सामने वाले समक्ष अपने आपको अपराधी मानकर जाता है। यदि जिससे क्षमा मांगी जा रही है वह तिरस्कार भी करे तो अपने मन को शांत रखो।