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पुष्य नक्षत्र : दीपावली से 4 दिन पहले 23 घंटे 7 मिनट रहेगा खरीदी का महामुहूर्त

पुष्य नक्षत्र : दीपावली से 4 दिन पहले 23 घंटे 7 मिनट रहेगा खरीदी का महामुहूर्त

पहले दिन सोम पुष्य में सोना-चांदी खरीदना होगा शुभ 

दूसरे दिन भोम पुष्य में भूमि-भवन खरीदना रहेगा लाभदायक 

बेंगलुरु। दीपावली के 4 दिन पहले खरीदी का महामूहुर्त पुष्य नक्षत्र 21 और 22 अक्टूबर को आ रहा है। इस वर्ष सोना-चांदी, बर्तन, जमीन व मकान की खरीदी के लिए पुष्य नक्षत्र 23 घंटे 7 मिनट रहेगा। पहले दिन 21 को जहां सोमवार रहने से सोम पुष्य और 22 को मंगलवार रहने से भोम पुष्य का संयोग बन रहा है।
ज्योतिर्विद एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के भविष्यवक्ता दिलीप नाहटा के मुताबिक पहले दिन सोना-चांदी, बर्तन, वाहन आदि की खरीदी अधिक मंगलकारी तथा मंगलवार को भोम पुष्य नक्षत्र होने से मकान, दुकान, जमीन और स्थाई संपत्ति की खरीदी अधिक हितकर मानी गई है। पुष्य नक्षत्र की शुरुआत 21 अक्टूबर की शाम 5:31 बजे से होगी जो अगले दिन 22 अक्टूबर को शाम 4:38 बजे तक रहेगी।
दोनों दिन इसके साथ ही विभिन्न शुभ संयोग भी रहेंगे। नाहटा ने बताया 22 अक्टूबर को सुबह 10:55 बजे तक साध्य और इसके बाद शुभ योग लग जाएगा। ज्योतिर्विद नाहटा के अनुसार दीपावली से पहले आने वाले पुष्य नक्षत्र में त्योंहारी खरीदी शुभ बताई गई है, इसलिए लोग पुष्य नक्षत्र का इंतजार करते हैं।
खासकर महंगी खरीदी इस नक्षत्र में की जाती है। इस नक्षत्र में गाड़ी, मकान, दुकान, कपड़े, सोना-चांदी, बर्तन, भूमि व भवन आदि की खरीदी की जा सकती है। पुष्य नक्षत्र में सोना खरीदने का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस दिन सोना खरीदने से समृद्धि आती है। इस दौरान की गई खरीदी अक्षय रहेगी जिसका कभी क्षय नहीं होता है।
खरीदी के दूसरे मुहूर्त धनतेरस का रहेगा सर्वार्थ सिद्धि योग..
पुष्य नक्षत्र के बाद खरीदी के दूसरे मुहूर्त धनतेरस पर इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। 25 अक्टूबर को त्रयोदशी सुबह 7:08 बजे से शुरू होगी और 26 अक्टूबर को दोपहर 3:47 बजे समाप्त होगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग होने से खरीदी पूजन का महत्व बढ़ जाता है। ज्योतिर्विद दिलीप नाहटा के मुताबिक इस दिन आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि तथा धन के देवता कुबेर का पूजन किया जाता है। धनतेरस सुख-समृद्धि का प्रतीक भी है।
इसलिए है खरीदी का महामुहूर्त 
ज्योतिर्लिंग दिलीप नाहटा के मुताबिक पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति और शनि देव इस नक्षत्र के दिशा प्रतिनिधि माने जाते हैं। बृहस्पति शुभता, बुद्धिमता और शनि स्थायित्व का प्रतीक है। इन दोनों का योग मिलकर पुष्य नक्षत्र को शुभ और स्थाई बना देता है। पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा जाता है। पुष्य को समृद्धि दायक और शुभ फल प्रदान करने वाला नक्षत्र भी बताया गया है।

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