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पुरुषार्थ सफलता का मंत्र-तंत्र-यंत्र : मुनि श्री सुधाकरकुमारजी

पुरुषार्थ सफलता का मंत्र-तंत्र-यंत्र : मुनि श्री सुधाकरकुमारजी

माधावरम्, चेन्नई; आचार्य श्री महाश्रमणजी के शिष्य मुनि श्री सुधाकरजी माधावरम्, जैन तेरापंथ नगर के जय समवसरण में नवरात्रा के छठे दिवस शुक्रवार को श्रद्धालुओं से धर्मचर्चा करते हुए कहा कि हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। अपने उत्थान और पतन के लिए स्वयं जिम्मेदार है। जीवन की नौका को दबाने वाला भी वह स्वयं हैं और उसे पार लगाने वाला भी स्वयं है। हर व्यक्ति को अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना पड़ता है। शुभ कर्मों का फल शुभ होता है, अशुभ कर्मों का फल अशुभ होता है। सफलता-असफलता, सुख-दु:ख, लाभ-अलाभ, यश-अपयश इसके लिए दूसरे को जिम्मेदार ठहराना अज्ञान व भूल है। हर व्यक्ति अपने भाग्य की तस्वीर स्वयं बनाता है।

 मुनि श्री सुधाकरजी ने आगे कहा कि हमें अपने अस्तित्व को पहचानना चाहिए। अपनी शक्ति को जागृत करना चाहिए। हर आत्मा अनंत ज्ञान, दर्शन, चरित्र व शक्ति से परीसंपन्न है। हम बूंद नहीं समुद्र है, बीज नहीं वट वृक्ष हैं, किरण नहीं बल्कि हमारे में सूर्य का प्रकाश छुपा है। अभिमान करना पाप है, तो स्वयं को दीन-हीन, दु:खी समझना महापाप है। यदि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ को जगा लेता है, तो वह असंभव कार्य को ही संभव कर दिखाता है। पुरुषार्थ सफलता का मंत्र-तंत्र-यंत्र है। भाग्य से अधिक हमें पुरुषार्थ पर विश्वास करना चाहिए। आज का पुरुषार्थ ही कल का भाग्य बनता है। जो व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं, उन्हें असफलता ही मिलती है।

हमें भाग्यवाद व ईश्वरवाद से अधिक पुरुषार्थवाद पर विश्वास करना चाहिए। पुरुषार्थ की लो सघन अंधकार में भी प्रकाश की नव किरण प्रस्फुटित करती है। पुरुषार्थ व प्रयास असफलता को भी सफलता में बदल देता है। उठो जागो, प्रमाद मत करो, इसे अपना जीवन मंत्र बनाएं, यह मंत्र सफलता की जननी है। सिद्धियां उन्हीं को वरमाला पहनाती है, जिनमें श्रमशीलता का गुण होता है। पुरुषार्थ सफलता का परम मंत्र है। उपरोक्त जानकारी श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी स्वरुप चन्द दाँती दी।

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