विजयनगर स्थानक भवन में विराजित जैन दिवाकरिय साध्वीश्री प्रतिभाश्री जी ने कहा कि मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करना और पुरुषार्थ से पहले सही श्रवण करना आवश्यक है। साध्वीश्री ने कई कथानकों के माध्यम से उदाहरण दे देकर समझाया ओर कहा कि श्रोता तीन प्रकार के होते है।एक जानते है पर बताने पर थोड़ा अनुसरण करते हैं, दूसरे जो जानते भी नहीं ओर श्रवण के बाद भी अनुसरण नही करते, तीसरे जिनपर कीसी भी प्रकार का कोई असर नहीं होता। सुबाहु कुमार का उदाहरण देकर कहा कि मात्र एक बार श्रवण करने से उसकी जिंदगी बदल गयी वंही इंद्र देवता ने मस्लीया पत्थर को गलाने के लिए सर्वस्त्र पानी ही पानी कर दिया पर फिर भी उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ। अतः मनुष्य चरित्र आत्माओं से जिनवाणी का चित्त लगाकर सही श्रवणपान करके जीवन को सुखी बना सकते है।
साध्वीश्री दीक्षिता श्री जी ने आगमो का विवेचन सुनाया।साध्वी प्रेक्षाश्रीजी ने अट्ठारह पापस्थान में पेशुन्य का पाप अर्थात चुगलखोरी का वर्णन करते हुए बताया कि चुगली स्वयं की प्रतिष्ठा को भी गिरा देती है वंही जिसके बारे में चुगली की जाये उसका विनाश करवा देती है। जैसे प्रतिष्ठित राजा दशरथ के सुराज में दासी मन्थरा ने केकैयी से चुगली करके साम्राज्य का विनाश करवा दिया व स्वयं का भी विनाश कर दिया। व्यक्ति को गुणग्राही बनना चाहिए। गुणग्राही अर्थात स्वयं में योग्यता के अभाव में व्यक्ति दूसरे के अच्छे कार्यों से जलन व ईर्ष्या से सदैव बुराइयां व दूसरे से चुगली करता रहता है।संघ के मंत्री कन्हैया लाल सुराणा ने पूज्य गुरुदेव रूपमुनी जी म सा व मधुकर श्री मिश्रीमल जी म सा की जन्म जयन्ति एवं इस उपलक्ष में ज्ञानशाला के बच्चों व टीचर्स द्ववारा ता 7 अगस्त से 11अगस्त तक आयोजित भव्य 9 तत्वों की प्रदर्शनी की रूपरेखा रखी।