एस एस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी म सा ने बताया कि पुण्य वाणी घट जाय तो सांस लेना भी कठिन हो जाता है श्वास के अन्दर भी पुण्यवाणीका संयोग है, इसलिए ज्ञानी जन कहते है अच्छे कर्म करन वाला उच्च गति को प्राप्त करता है सम्भल करके चलना सोच समझकर पद्धत्ति को जैन धर्म पाप कर्म का निषेध करोगे तो पाप से बच जाओगे और सम्यक प्रकार से पालन करोगे तो पाप से बच जाओगे।
जीनवाणी कहती है एक पानी के जीव में असंख्यात जीव है तो बिना प्रयोजन के पानी में एक अंगुली भी नहीं डालें। नीमित पाकर कर्म भी उदय में आ जाते है। पानी को वेग ज्यादा होने पर सरकार निषेध करती है यह भगवान की वाणी ही है। कोई भी कही भी जबरदस्ती से बुलायेगा वहाँ चले जायेगे क्या।
जहाँ मजा है वहाँ सजा है, प्रबल पुण्यवाणी का उदय होने पर पानी में फिसला हुआ आदमी भी नदी के किनारे पहुँचकर सुरक्षित हो जाता है। पहाड़ों पर फोटो लेते पाँव फिसल गया तो क्या वह बच सकता है क्या? अगर पुण्यवाणी हो पेड की डाली हाथ में आ जाती है और प्राण बच जाता है। भयानक जंगल में भटक जाता है तो उस सही राह दिखावे I बाबा है वैसे ही संसार अटवी है यदि यहाँ पर सही मार्ग दिखाने वाला हो तो बच सकता है। बेटे को सही सलाह और सही राह दिखाने वाला हो।
अंधा व्यक्ति सही राह दिखा सकता है क्या? सही दिशा दिखाने वाले तीर्थकर भगवान ही सलाह दे सकता । तींर्थकर के अलावा में सही दिशा कोण बताने वाले है नमो लोए सव्व साहूणं अन्य कोई बता सकता है क्या? पंच परमेष्ठी, गुण पुरुष नई दिशा गती मार्ग दिखा सकते हैं। यदि उनके मार्ग चलते है तो जीवन का कल्याण हो जाता है। हमारी आत्मा में सिद्ध बनाने का सामर्थ्य है सिद्ध आठों कमों से मुत हो गये है यदि हम भी आठ कर्मों से मुक्त हो जाते।
सिद्ध गुरु ही धर्म का गुण बताते है और धर्म बताकर सच्चे बनने का सामर्थ्य है स्वरूप को दिखाकर सिद्धशीला पर पहुंचा सकते है। द्वार के बिना मकान में पहुंच नहीं सकते है। सामान्य से सारी आत्मा को भी आत्म से परमात्मा बनाने वाले एक ही है ज्ञान के बिना कोई भी क्रिया सम्बन्ध नहीं है। ज्ञानयुक्त क्रिया ही जीव को तारती है। पहले ज्ञान होगा तभी सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। गुरु को देखने मात्र से ज्ञान प्राप्त हो सकता है यदि हम उनके आचार देखते है ज्ञान के साथ सम्यक प्रकार का चारित्र पालन करने जोडा काल कर जाते है। साथ में काल करने वाले युगलिक है।
एक मित्र काम करके देवलोक में उत्पन्न हो जाता है और मन में पश्चाताप देखो मेरा भाग्य देवलोक में जिन शब्द सुनने का मौका नहीं। घर में सुविधा बन सकती है, अतिथि रूम भी बन सकता है क्योंकि घर में धर्म ध्यान करने के लिए कोई स्थान नहीं है। मकान बनाते वक्त धर्म ध्यान करने का स्थान बनाना चाहिए । यदि धर में सुविधा हो तो पौषध, संवर कर सकते है कितनी पुण्यवाणी घटी है कि धर्म ध्यान करने का स्थान नहीं है। सभी सुविधा खोज लेते है लेकिन धर्म ध्यान करने का स्थान नहीं है।
सुबह होते ही हो पाप कार्य शुरू हो जाता है यदि घर में धर्म स्थान हो तो स्वयं भी धर्म ध्यान कर सकते है और कोई साधु संत को भी स्थान दे सकते हैं। यदि कोई धर्म करने के लिए स्थान हो देवलोक जैसे बन जाता है ।