जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी द्वारा आदिनाथ भगवान के आंतरिक व बाहरी गुणों का विवेचन करते हुए कहा गया कि परमात्मा का विराजमान सफटिक सिंहासन भी अनेकानेक शुभ पुदगलो से निर्मित है!जिस सिंघासन पर आप विराजमान रहते है वो आपके पुण्य अतिश्यो से अधिक देदिप्यामन हो उठता है उसकी अदभुत दिव्यता भव्यता से देवगन भी लोभयमान हो उठते है क्योंकि आपकी शरीर रचना भी अद भुत रहती है। दुनिया भर के समस्त शुभ पुद्दगलो से पुण्यो से आप शोभायामान रहते है!
इन्सान, इन्सान एक होते हुए भी पुण्य पाप का असर दिखलाई देता है एक इंसान सब का चहेता बनता है। जहाँ जाता है वहां अपना प्रभाव छोड़ता चला जाता है दूसरा हर जगह अनादर का पात्र बनता है! एक अमीरी मे जीवन यापन करता है तो एक गरीबी मे जीवन जीने को मजबूर होता है! इसके पीछे स्वयं के किए गए पुण्य पाप के ही परिणाम ही फल देते है अत : हमेशा पाप से दूर रह कर पुण्य का उपार्जन करना चाहिए! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी महाराज द्वारा जीवन विकास के सूत्रों का विवेचन करते हुए कहा गया कि उथान पतन हमारा हमारे हाथों मे है! उत्थान के कार्य करें तो उत्थान एवं पतन के कार्यों से पतन भी अवश्यभावी है! सतत जागरूकता की जरुरत है!