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ज्ञान वाणी

पुण्य तत्त्व

क्रमांक – 29

. *तत्त्व – दर्शन*

 *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*

*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*

*🔅 पुण्य तत्त्व*

*पुण्य के नौ भेद मुनि को लक्ष्य कर किये गये हैं, ऐसा कहा जा सकता है। मुनि को अन्न-पान आदि की आवश्यकता होती है अतः अन्न पुण्य, पान पुण्य आदि कहा गया है। मुनि को गाय-भैंस और सोना-चांदी आदि की आवश्यकता नहीं होती है। अतः गाय पुण्य, भैंस पुण्य, सोना पुण्य, चांदी पुण्य आदि नहीं कहा गया है। साधु की साधना में सहयोगी बनना श्रावक जीवन का अंग है। साधु को संयमानुकूल अन्न-पान आदि का दान देना, दान देने के संबंध में मन, वचन तथा काया की प्रवृत्ति शुद्ध रखना और साधु को नमस्कार करना श्रावकाचार है।*

*धर्म के बिना पुण्य नहीं होता है। पुण्य का बंध सत्प्रवृत्ति से होता है और सत्प्रवृत्ति मोक्ष का उपाय है। जो मोक्ष का उपाय है वह धर्म है। इसका फलित यह हुआ कि जहां धर्म है, वहां पुण्य का बंध है। धार्मिक प्रवृत्ति के साथ ही पुण्य का बंध होता है। जिस प्रकार अनाज के साथ भूसा होता है, उसी प्रकार धर्म के साथ पुण्य होता है। पुण्य का स्वतंत्र बंध नहीं होता है।*

*क्रमशः ………..*

*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*

विकास जैन।

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