श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जारी नवपद ओली आराधना के अंतर्गत श्रीपाल चरित्र का वांचन करते हुए जयकलश मुनि ने कहा पुण्य के प्रभाव से पग – पग पर ॠद्धि , सिद्धि और नवनिधि प्राप्त होती है।
पुण्य के बल पर ही व्यक्ति अपने मनोवांछित फल को प्राप्त कर सकता है ताकि सारे सहयोग उसके लिए अनुकूल बने। पुण्यशाली जहां भी जाते हैं उनके आगे – आगे उनका पुण्य चलता है और उसे मार्ग दिखाता रहता है। पुण्यवान व्यक्तियों के स्मरण एवं संसर्ग से स्वयं की पुण्यवानी बढ़ती है।
पुण्यवानी बढ़ाने का सरल और सहज उपाय हैं धर्म आराधना। जो दूसरों पर अनुकंपा रखते हुए उसका भला करने के लिए तत्पर रहता है ऐसे दानी व्यक्ति के स्वतः ही पुण्य का उपार्जन होता है। पुण्य से ही उत्तम पदवी, यशकीर्ति, मान – सम्मान प्राप्त होता है।
मनुष्य जन्म और उत्तम कुल प्राप्त करने के लिए भी पुण्य का उपार्जन करना जरूरी है। पुण्य से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। अतः हर साधकों को पुण्य उपार्जन के उपाय पर चिंतन करते हुए जीवन को सार्थक करना चाहिए।
जहां पुण्य है वहां बल, बुद्धि, लक्ष्मी तीनों की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि पुण्य की दासी होती है लक्ष्मी। सूर्य उदय होने पर अस्त होता है किंतु जिनका यश और पुण्य प्रबल हो उनका हमेशा अभ्युदय ही रहता है। देव, गुरु, धर्म की आराधना के साथ तप, संयम और परोपकार करने पर जीवन सफल हो जाता है।
संकट के समय चिंताओं की जाल में उलझने की जगह यही चिंतन करना चाहिए जितना ललाट में लिखा होगा उतना ही मिलने वाला है। जीवन एक पहेली है जिसको सुलझाने में ही पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है। मुनि वृंद के सानिध्य में 14 अक्टूबर से प्रातः 9:30 बजे से उतराध्ययन सूत्र पर प्रवचन एवं 15 अक्टूबर से प्रातः 8:00 से 9:00 तक पुच्छिसुणं का सामूहिक जाप होगा।