चेन्नई. महापुरुषों का सानिध्य मनुष्य को नया मार्ग दिखाता है। धर्म के कार्य से खुद को जोडऩे के साथ अन्य लोगों को भी जोडऩे का प्रयास करना चाहिए। पुण्यशाली वही होता है जो दूसरों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक विनयमुनि ने आयंबिल ओली के तहत जारी नवपद की आराधना के अंतिम दिन कहा कि देव गुरु और धर्म को अगर मनुष्य दिल से समझ कर उसका अनुसरण करें तो जीवन का कल्याण हो जाएगा। ऐसा करने पर आत्मगुणों में प्रवृत्ति करते हुए आगे बढ़ा जा सकता है।
सागरमुनि ने कहा परमात्मा ने अपने आचरण से उपदेश देकर सुख और शांति का मार्ग गठित किया है। बहुत ही पुण्यशाली होने पर मनुष्य का भव मिलता है। इस भव में आकर जीवन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। परमात्मा ने आलोक के स्वरूप को बताया है, जो जीवन के तत्व को नहीं जानते वे लोक को भी नहीं जान सकते।
आत्मा को जानने वाला पूरा लोक के स्वरूप को जान लेता है। अंधकार को जानने वालों के जीवन में प्रकाश आ जाता है। आत्मा का स्वभाव ठंडा होता है लेकिन कषाय आने पर मनुष्य में लोभ, मोह और माया आ जाती है। इससे जीवन अंधकार रूपी मार्ग पर जाने लगता है। साधना, तप और धर्म कर इसका अंत किया जा सकता है।
इससे पहले संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी और मंत्री मंगलचंद खारीवाल सहित संघ के अन्य पदाधिकारियों ने संजयमुनि को वर्र्षीप आयंबिल ओली तीर्थंकर तपस्या के लिए सम्मान की चादर उढ़ाई।
कोषाध्यक्ष गौतम दुगड़ ने बताया कि उपप्रर्वतक गौतममुनि की मौन साधना के समापन के उपलक्ष्य में गुरुवार को सजोड़े जाप का आयोजन किया जाएगा। उसके बाद 28 अक्टूबर को गुरु फतेहचंद की 67वीं पुण्यतिथि, उपाध्याय पुष्करमुनि की 109वीं और प्रवर्तक मदनमुनि की 67वीं जयंती पर गुणानुवाद होगा।