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पाषाण से प्रतिमा नहीं भगवान निकलेंगे: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

पाषाण से प्रतिमा नहीं भगवान निकलेंगे: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ किलपॉक के प्रांगण में आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर की निश्रा में बुधवार को तीर्थंकर परमात्मा मुनि सुब्रत स्वामी की प्रतिमा निर्माण की टांकनी विधि की शुरुआत हुई। इससे पहले किलपॉक में तम्बूस्वामी रोड स्थित नरेन्द्र साकरिया के आवास मेघविल्ला पर प्रभुभक्ति के पश्चात शोभायात्रा निकाली गयी जो निर्माणाधीन मुनि सुब्रत स्वामी जिनालय के प्रांगण पहुंची।

वहां अष्टप्रकारी पूजा का अनुष्ठान हुआ और मंत्रोच्चार के साथ टांकनी विधि प्रारंभ हुई। इस मौके पर आचार्य ने कहा सांख्यिक दर्शन का सिद्धांत है जो अन्दर रही चीज बाहर आती है। पाषाण से प्रतिमा नहीं निकलेगी बल्कि इस पाषाण में जो भगवान है उनको प्रकट करना है। अनावश्यक पाषाण को दूर करेंगे तो प्रभु प्रकट हो जाएंगे।

उन्होंने कहा अध्यात्म साधना यह है कि हमारे अन्दर ही सिद्ध स्वरूप विद्यमान है, जिसे बाहर लाना है। राग, द्वेष, विषय, कषाय, मोह, माया, ममता, काम, क्रोध, लोभ के कारण यह अन्दर दबा है।

अगर इसे हम बाहर निकाल दें तो सिद्ध स्वरूप प्रकट हो जाएगा। इसके लिए पहले बाहर निकालने की प्रक्रिया समझना जरूरी है। ये सब दूर करने के लिए पाषाण को टांचने जैसे हृदय में घाव लगाना पड़ेगा, इससे सब दुर्गुण दूर हो जाएंगे और अन्दर रहा सिद्ध स्वरूप प्रकट हो जाएगा। हमारे अन्दर रहे अहंकार को हमें खत्म करना है।

उन्होंने कहा सब प्रभु के साथ एकाकार हो जाओ। मुनि तीर्थ तिलकविजय ने कहा सूरदास शरीर पर हर जगह पर आंख देने की प्रार्थना करते थे ताकि वे प्रभु के दर्शन कर आनंद प्राप्त कर सके।

उन्होंने कहा परमात्मा की अंजनशलाका व प्रतिष्ठा के कार्य का उत्साह व भाव चरम पर ले जाना है। टांकणी विधि के मुख्य सहयोगी जीवीबाई मेघराज साकरिया परिवार, कमलाबाई पारसमल श्रीश्रीमाल परिवार व धन्नालाल धर्मचंद परिवार थे।

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