पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया की शिष्य ने पुछा गुरुदेव श्रावक की – क्या पहचान हे?
1 पाप भीरुता – गुरु ने बताई पाप से डरते है श्रावक होते हैं। साधु या श्रावक पहली पहचान पाप से डरना चाहिए, पाप से डरते नही पर आप साधु या श्रावक नहीं है।
श्रावक वह जिसके जीवन में पाप से डर है पापो का सीरमोर कौन है?
*मोह* पापों का सिरमौर है दो मानव है संसार में *एक मोह को जीतने वाले साधक*, *दूसरे मोह में जीने वाले संसारी है।*
जो मोह में जीते है वह संसारी जो मोह को जीतते हे वह साधक है। धर्म स्थान पर उपस्थित हुए इससे प्रमाणिक होता है कुछ अंशों में मोह को जीता है इसलिए आये है। गर्मागर्म चर्चाओ को छोडकर यहाँ प्रवचन सुनने के लिये आये हो • इससे साबित होता है थोड़ा थोड़ा मोह को जीता है।
1,,मोह में जीने वाले से घर, दुकान, माया का मोह नहीं छुतटा,,, office जाकर मोह की पूर्ति कर रहे है। नगर में संत जाते है आप घर में बैठे है। संत का सन्मान उनके दर्शन, व्याख्यान सुनने से होता है। जो मोह में जीते हे वो कहते है तो संत आते रहते है क्या.. संतों के पीछे चलते रहेंगे, कोई काम नहीं…
आपके मन में आस्था है तो काम को छोडकर यहाँ आते है।
जब तक मोह है तब तक यहा नही आ सकते है धन, संत भाग्य, सौभाग्य से आते है, संतों को देखकर अहोभाव आते है तो आप *1अंश में साधक है* कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, एकदिन हम सारे मोह को जीत लेंगे।
*अन्नाण मोहस्य परिवज्जनाय*
*अज्ञान* और *मोह* यही दो पापों की के सीर मोर है। अज्ञान व मोह को जीतने वाला सीरमोर बन जाता है। मनुष्य अनादिकाल से मोह में जीता रहा इस मनुष्य गति में मोह को जीतना है। *संकल्प विधि* कही है, संकल्प करने वाले मोह को जीत सकते है, *बशर्त है संकल्प जगे* । मधुरे नहीं जीत सकते है मोह को जीतने वाले पापभीरु बन जाते है। *मित्थ्या दर्शन* पाप सबसे बड़ा पाप है। मोह का त्याग सबसे बड़ी साधना है। मोह का त्याग कर ले…
*मोह त्याग की कठिन तपस्या… हम सुलाझे ले यही समस्या, परम ज्योति में रम जाते मोह त्याग में सुखपासी.. सुन. सुन रे मेरे भ्रमर मनपामी, मोह त्याग में सुख पासी।*
मासखमण करना, तपस्या करना सरल नही । मासखमण से ज्यादा कठिन मोह को त्यागना । मोह को जीत ले तो बहुत बडी
बात है। मेने एक तेला, एक बेला किया, ज्यादा नहीं होता !
मोह को त्यागे वो तेरा मोक्ष हो जायगा । *मोह* सबसे बडा पाप हे सब पापों का कारखाना है यह चालु है तो.. हमारा मोक्ष कैसे होगा,
श्रावक मोह से डरता है, मोह को मदिरा की उपमा दी है,, विवेक चेतना लूप्त हो जाती है माँ को बेटी कर देता है ।
मोह की मदिरा हमारे लिए हानिकारक है ,, मोह जुड़ना नही चाहिए, मोह जगना नही चाहिये।
मोह के कई ठिकाने है , शरीर का राग ,अच्छे कपड़े पहनते,ओढ़ते है शरीर के लिए मोह का राग ।
कितनी होटल और रेस्टोरेंट है किसके लिए? मोह की पूर्ति के लिये, सारे के सारे संसार अढ़ाई द्वीप, 15 क्षेत्र , घातकी खण्ड में , ऊर्ध्व लोक में मोह का साम्राज्य है ।
शास्त्र में आता है पांच पांचा , आचार्य नरक में जायँगे , आठ अट्ठा श्रावक, नो नोका जीतनि संख्या वाले श्राविका नरक में जायँगे,,
क्या आचार्य मुनि नरक में जायँगे क्या??
मुनि बनने से पहले घर छोड़ा यहाँ आकर सम्प्रदाय, संघ, क्षेत्र , श्रावक, श्राविका में बंध गए मोह मेरा पैदा हो गया यह मोह नरक में ले जाता है ।
मोह करना नही, में मोह करता हु तो मेरा कहा *प्रभावित* कर सकता है *भावित* नही कर सकता।
संथारा ग्रहण करते है तो आहार, पानी, शिष्यों का त्याग करते है ,संघ -गण का त्याग करते है अगर आसक्ति रह गई तो मरकर वे महाराज वे वहां चले जायँगे।
*एगो हम नत्थि हो कोई, नसम अहम नोही पितिसे*
न में किसी का हु न कोई मेरा है अन्यतत्व भाव मे जीते है ।
आस्था मरती नही , मोह का आपको नही हमे भी करना चाहिये
*मोक्ष मोह* का त्याग करने से होता है *मोह* का राग करने से मोक्ष नही होगा , यह बात का अहसास होना चाहिये, बड़े बड़े राग मोह है , *मोह* के त्याग के बिना *शांति, समाधि* की प्राप्ति नही होगी
दृश्टान्त: सेठ जी के दो बेटे मोटू ओर छोटू का….
एक काम मोह का त्याग, राग का त्याग हो, मोह पापो का सेनापति है ।
श्रावक को है?
जो पाप से डरता है , आजकल श्रावक पाप से नही सरकार से डरते है income tex, sells tax, gst tax, officer से डर लगता है।
*पाप से डरोगे तो मोह का त्याग कर सकोगे।*