मदुरांतकम. यहां विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा परिवार, समाज व देश के लोग जिस काम की निंदा करें एवं घृणा की दृष्टि से देखें वह पाप कहलाता है। पाप मानव जीवन का वह शाप है जो एक बार पीछे पड़े जाए तो जन्म-जन्मांतर तक नहीं रुकता। पाप के अभिशाप को वरदान में बदलने के लिए प्रायश्चित ही एकमात्र उपाय है।
जो व्यक्तिगत या सामाजिक रूप से न्यायसंगत नहीं हो पाप की श्रेणी में आता है। समाज के अपने नियम, परंपराएं एवं मान्यताएं हैं जिनको तोडऩा ही पाप है। चोरी, झूठ, बेईमानी एवं विश्वासघात करना एवं अनैतिक कार्य में लगे रहना सभी कर्म अनुचित हैं। एक नैतिक एवं सामाजिक जीवन का तकाजा है कि न तो स्वयं पाप कर्म करे और जहां तक संभव हो दूसरे को भी पाप कर्म करने से रोके।
पाप किसी का बाप नहीं होता इसलिए पाप की प्रवृत्ति जीवन को हर पल अपराध बोध से कचोटती है। पाप इसलिए दुखद नहीं है कि वह निषिद्ध कर्म है बल्कि इसलिए मना है कि उसका परिणाम दुखद है। यह दुखद परिणाम आदमी को अकेले ही भोगना पड़ता है। पाप से कभी छुटकारा नहीं मिलता। हंस-हंस कर किया गया पाप रो-रोकर भोगना पड़ता है। हाथों से लगाई गई गांठ को एक दिन दांतों से खोलना पड़ता है।
पापी का कोई रखवाला नहीं होता। पुण्य से बड़ा कोई रक्षक नहीं होता। पाप और झूठ सिक्के के दो पहलू हैं। जो पाप के रास्ते पर आगे बढ़ता है सबसे पहले उसके द्वार पर झूठ दस्तक देती है और झूठ के रास्ते ही जिंदगी के सारे पाप प्रवेश करते हैं।
संचालन संघ के महामंत्री प्रफुल्लकुमार कोटेचा ने किया। उन्होंने बताया कि संतगण यहां से प्रस्थान कर अचरापाक्कम होते हुए दिंडीवणम जाएंगे जहां उनके सान्निध्य में नववर्ष का महामांगलिक होगा।