चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने पाप सजग रहने की हिदायत देते हुए कहा पाप के प्रति आपके दिल में नफरत पैदा होनी चाहिए। प्रतिक्रमण पाप और पाप के संस्कारों को खत्म करता है और यदि आप में पाप के संस्कार नहीं हैं तो पुण्यार्जन होगा। पाप को खपाने के लिए तप आवश्यक है।
उन्होंने कहा प्रतिक्रमण करते समय मनशुद्धि के लिए शरीर व वस्त्रशुद्धि आवश्यक है। प्रतिक्रमण शुद्ध विधि से करना चाहिए। कई लोग कहते हैं प्रतिक्रमण अविधि से करने से बेहतर है नहीं करना लेकिन अविधि के कारण उसे प्रतिक्रमण छुड़ा देंगे तो विधिपूर्वक वह कभी नहीं कर पाएगा। प्रतिक्रमण अनाचार व अतिचार की क्षमा याचना करने के लिए किया जाता है।
प्रतिक्रमण सूत्रों में मणि, मंत्र और औषध का बड़ा प्रभाव है, उसके सेवन से मन की बुराइयां निकल जाएंगी और अनादि काल से मोह का विष जो हमारे जीवन में भरा पड़ा है, वह नष्ट हो जाएगा। उन्होंने कहा विरति व समता भाव से जो क्रिया हम करते हैं वह पुष्टिकारक बनती है।
पच्चखाण सूर्यास्त से पूर्व लेने से उसका फल अधिक मिलता है। मंगलकारी क्रिया में विघ्न न हो जाए उसके लिए देव वन्दन किया जाता है। यदि आपमें सम्यक ज्ञान है तो कोई पाप अतिचार तक नहीं पहुंच सकता। जिनवाणी नहीं सुनना अनाचार की श्रेणी में आता है। शास्त्रों व आगम का रहस्य जिसने जाना है उसे ही प्रवचन देने का अधिकार है।