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पाप की निंदा से पापक्षय और पुण्य की अनुमोदना से पुण्यबंध होता है: विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा

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सुंदेशा मुथा जैन भवन कोंडितोप चेन्नई में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सुरीश्वरजी म.सा ने कहा कि:- मटके को पकाने के लिए कुंभार उसे आग में डालता है। , दाल को पकाने के लिए रसोइयाँ उसे चूल्हे पर चढ़ाता है , वैसे ही आत्मा के तथाभव्यत्व को पकाने के लिए पूर्वाचार्यो ने 3 श्रेष्ठ उपाय बताए। तथाभव्यत्व को पकाना अर्थात् अपने आत्मकल्याण की गति को तेज करना । इसके तीन उपाय है- अरिहंत आदि चार शरण स्वीकार करना, पश्चाताप के भाव से अपने दुष्कृतो की बार बार निंदा करना और जगत में होने वाले सभी सुकृतो की अनुमोदना करना ।

अरिहंत आदि की शरण स्वीकार करने से अपनी आत्मा निर्भय बनती है। तत्पश्चात् इस जन्म और पुर्व के अनंत जन्मों में किये पाप -दुष्कृतो की आत्मसाक्षी से निंदा करने से आत्मा , पाप के मैल से मुक्त बनती है। स्वच्छ बनी आत्मा पर गुणों के आभुषणों को धारण करने के लिए जगत में होने वाले सभी जीवो के सुकृतो की अनुमोदना करनी चाहिए। पापों की निंदा करने से पाप का नाश होता है और सुकृतो की अनुमोदना करने से पुण्य का पुंज इकट्ठा होता है। दुष्कृतो की निंदा हमे अपने दुष्कृत देखने है। और आत्मनिंदा करनी है, सुकृतो में अपने सुकृत नही लेकिन दुनिया मे होने वाले सभी जीवो के सभी सुकृतो की अनुमोदना करनी है।

व्यक्ति अपने स्वयं के जीवन में सुकृत कार्य थोडे ही कर सकता है। हमारी वह शक्ति नहीं, कि हम सभी सुकृतो का आचरण कर सके , परंतु सुकृतो की अनुमोदना कर उनके पुण्य में भागीदार अवश्य बन सकते है। सुकृत की अनुमोदना मन का विषय होने से एक पैसा भी व्यय करना नहीं पडता फिर भी अन्य के सुकृतो को देख मन में अनुमोदना का भाव आना अति कठिन है। भूतकाल में हुए हजारों- लाखो पुण्यात्माओं के जीवन में हुए ढेर सारे सुकृतो का वर्णन अथवा नामोल्लेख पूर्वक उन्हे वंदन करने से पुण्यबंध होता है।

अतः दिन में बार – बार उनकी अनुमोदना करनी चाहिए। प्रवचन दरम्यान सुकृत अनुमोदन भावयात्रा के साथ पूज्य आचार्य श्री द्वारा आलेखित New message for new day का भव्य विमोचन भी शा विजयराज जी वैद तथा दिलीप भाई आदि के करकमलों से संपन्न हुआ। 

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