पू.आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया की साफ न किया अगर दिल को गंगा नहाये तो क्या हुआ,, पापों में मनवा घुम रहा, माला फिराये तो क्या हुआ,,
साफ किया न मगर दिल को गंगा नहाये तो क्या हुआ…..
भगवद गीता, रामामण, निस दिन सुनता रहता है,,
अमल किया इन पर कुछ भी, , नर तन मिला तो क्या हुआ,,
मुख से राम-राम करता है और मन में हेरा फेरी है, जाकर मंदिर मस्जिद में सीस झुकाये तो क्या हुआ…..
झूठी माया के खातिर तु पाप बटोरता रहता है,
दीन दुःखी की बात न पुछे -२ ब्राह्मण जीमाये तो क्या हुआ
तर्ज : रहने दो इन आँखों को
आत्मीय बंधुको माता बहनो,,, शिष्य ने पुछा गुरुदेव श्रावक की क्या पहचान है? पहली पहचान श्रावक *पापभीरु* होता है, जो पाप से डरता है, जो पाप से डरते है नही वे साधक श्रावके नहीं हो सकता है।
*पाप* क्या है?
*में और मेंरा यही हे पाप का घेरा।*
में में जीते हो के नहीं? हर व्यक्ति ‘में” में जीता है। में डॉ, वकील, विद्वान हु! में का घेरा हम सब के साथ लगा रहता है, जितने भी पाप हो रहे हे *में* की पुष्टी ओर *मेरे* की तुष्टी के लिये पाप होते हैं।
*समस्त दंसी न करेई पाप* जिसने *समयकत्व* की प्राप्ती कर ली वह *में और मेरे की पुष्टि नहीं करता।* सम्यक ज्ञान, दर्शन इस जीवन में प्राप्त हो सकता है। में और मेरा से मुक्त हो सकता है। आपका नाम, कपडे, बोलना, चलना रोजी रोटी कमाने का ज्ञान दुसरो ने दिया, दुसरो ने सिखाया
जन्म से मरण की यात्रा में सूक्ष्मता से चिंतन करे .. तो
दुसरो ने सब सीखया फिर भी करते है *में, में मेरा करते है।* इस घेरे से कौन मुक्त हो सकता है जिसने *समयक्तव* को प्राप्त कर लिया।
में, मेरा अपना ,,पराये माल को अपना कह रहा हूँ! मैं ,,मेरा कहकर *मोह, माया* को बढ़ा रहा है।
जब तक दील साफ नहीं होगा गंगा नहाए तो क्या हुआ…
मेरा क्या है ? में क्या हूँ!
में बदला लेने में नही बदलने मे विश्वास रखता हूं, संसारी बदला लेने वाले होते है ।
संसारी *में ओर मेरे* के घेरे में जीते है संसारी का संसार बढ़ता चला जाता है ।
*सम्यकदर्शी वाला* में ओर मेरे का पाप करता नही, क्या मेरा व तेरा है ? *हंस जब जब उड़ा अकेला उड़ा है..*
*इच्छाओं* में जीना *राग है,* इच्छा पर काबू पाना *वैराग्य है*, इच्छाओं से परे हटना *वीतराग है ।*
सम्यक दृष्टि जीवड़ा करे कुटुम्ब प्रतिपाल, अंतरगत न्यारो रहे , धाय खिलावे बाल…
धाय माता जानती है यह बालक मेरा नही है, परिवार कुटुम्ब में रहता है अंतर आत्मा से अलग रहता है , कब मेरा संसार छुटे यह सम्यकदृष्टि वाला सोचता है ।
आप क्या लेकर जायँगे? बंगला ,गाड़ी, जाओगे क्या ?
में ओर मेरा कर रहे है , राग मोह को छोड़ो *शूरवीर* छोड़ता है कायर क्या छोड़ेगे?
*शूरवीर* एक पल में संसार छोड़ चले गये।
पत्नी पति की लात सह लेती है पर पीहर की बात नही सह सकती , धन्ना जी ने शालीभद्र से कहा एक साथ छोड़ो, *एक साथ छोड़ना बलिहारी है और एक एक को छोड़ना मजबूरी है ।*
*में ओर मेरा यह पाप का घेरा है*
त्याग का भाव जगाते रहो ,*त्याग पाप से मुक्त कराता है , में ओर मेरा सारा बंधाता है ।*
मनुष्य जन्म , उत्तम कुल, वीतराग, वीतराग की वाणी मिली …
*साँचा कोई छे वीतराग,सांची छे वीतराग कि वाणी,,*
*आधार छे आज्ञा,बाकी सब धूल ढाणी,,*
*वीतराग* की वाणी से जीवन का निर्वाण करते है तो *समझदारी है*, मुक्ति पाना है तो गुरु के पास चले जाओ, तो गुरु मना नही करेंगे ।
प्रौढ़ अवस्था मे शालीभद्र व धन्ना जी ने दीक्षा ली , *वैराग्य* की कोई उम्र नही होती, *बचपन मे भी वैराग्य ओर पचपन में भी वैराग्य* आ सकता है ।
*संयम खुद को तिरने ओर दुसरो को स्थिरता प्रदान करने के लिए है, *में ओर मेरा !* मेरा क्या सब जाने वाला है ।