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पापों को अटकाने के लिए प्रतिक्रमण, पचक्खाण और संवर आवश्यक है- आचार्य उदयप्रभ सूरी

पापों को अटकाने के लिए प्रतिक्रमण, पचक्खाण और संवर आवश्यक है- आचार्य उदयप्रभ सूरी

किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी के समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने 45 आगमों का विश्लेषण करते हुए कहा कि अंग और उपांग आगम विश्व व्यवस्था देने के स्रोत है। अंग की बातों को थोड़े से विस्तार से समझने का कार्य उपांग करते हैं। आत्मा की शुद्धि का विश्लेषण और व्यवहार छह छेद आगम के अंदर है।

उन्होंने कहा तीर्यंच के जीवों की संख्या अन्य गति के जीवों से अधिक होती है, निगोद के जीव भी तीर्यंच में आते हैं। मानवभव इसीलिए प्रशंसनीय है कि यहां अच्छे निमित्त ज्यादा और बुरे निमित्त कम मिलते हैं। देव भव में बुरे निमित्त ही होते हैं। छेद पापों का विनाश करता है। पाप तीन होते हैं वर्तमानकाल के पाप, भूतकाल के पाप और भविष्यकाल के पाप। आत्मा में भूतकाल के पाप सबसे ज्यादा रहे हुए हैं।‌ भविष्य के पापों को अटकाने की ताकत हमारे अंदर है। वर्तमान में पाप को खत्म करने के लिए गुरु का सान्निध्य होना चाहिए। ज्ञानी कहते हैं भविष्य में किए जाने वाले पापों का प्रायश्चित पहले नहीं होता है। पापों को अटकाने के लिए प्रतिक्रमण, पचक्खाण और संवर आवश्यक है। हमें भविष्य के पापों के प्रति वेदना रखनी चाहिए।

आचार्यश्री ने आगे कहा किए हुए पापों का प्रायश्चित प्रतिक्रमण से, वर्तमान में होने वाले पापों का पचक्खाण से और भविष्य के पापों के लिए संवर जरूरी है। उन्होंने कहा जीवरक्षा के उद्देश्य से परमात्मा ने छः तरह के पानी बताए हैं। अंतरिक्ष के पानी की जीव संख्या में औस के पानी की जीव संख्या अधिक है। उन्होंने कहा अनुयोग नाम का आगम सारे आगमों को पढ़ने की तकनीक के रूप में कार्य करता है। पयन्ना आगमों में सर्वप्रथम तीर्थंकरों को नमस्कार करने के लिए अतिशय का वर्णन हुआ है‌। परमात्मा के जन्म के चार अतिशय होते हैं। पहला उनका देह मेल और व्याधि के बिना का होता है।

दूसरा मांस और खून गाय के दूध की तरह सफेद होते हैं। तीसरा पद्मकमल की सुवास जैसी सुगंधी श्वास और चौथा आहार विहार अदृश्य। आचार्यश्री ने कहा हम धर्म छोड़ते हैं लेकिन पर्व हमें छोड़ते नहीं, पर्व का स्वभाव है हमें धर्म से जोड़ना। उन्होंने कहा परमात्मा को केवलज्ञान होने के बाद उन्नीस अतिशय होते हैं। आकाश में चक्र, छत्र और चांवर चलता ही रहता है। स्फटि‌क रत्नों का सिंहासन भी चलता रहता है। वे जहां भी जाते हैं देवदुंदुभि का नाद और हजार योजन जितनी इंद्रध्वजा साथ में चलती है। ‌उन्होंने कहा क्रिया जल्दी पकड़ में आती है, ज्ञान देरी से पकड़ में आता है और ध्यान और भी देरी से पकड़ में आता है। उन्होंने कहा प्रवचन कलेक्शन के लिए नहीं, करैक्शन के लिए सुनना चाहिए।

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