Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

पापों का प्रायश्चित कर शुद्धिकरण करना जरूरी: साध्वी मुदितप्रभा

चेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया भवन में विराजित साध्वी मुदितप्रभा ने कहा पापों का प्रायश्चित कर शुद्धिकरण करना आवश्यक है। अठारह पापों की शृंखला में नौवें राग रूपी पाप को समझाते हुए कहा हम वस्तु, स्थान, व्यक्ति विशेष पर राग के वशीभूत होकर अन्य अनेक झूठ-चौर्य आदि पाप कर लेते हैं।

राग से हट कर वैरागी बनना चाहिए। द्वेष पाप परिवार रिश्ते-नातों में दोस्ती, संघ-समाज में घृणा का माहौल उत्पन्न कर देता है। राग भी द्वेष में परिवर्तित होता है।

एक से राग तो दूसरे से द्वेष भाव हो ही जाता है। द्वेष की चिंगारी में नहीं जलते हुए प्रेम पूर्वक रहना चाहिए। आज तक जिन जिन के प्रति राग द्वेष किया हो, भाव रखे हों उन भावों की आलोचना करें।

कलह रूपी पाप हर स्थान पर क्लेश व झगड़े उत्पन्न करता है। कुछ व्यक्ति कलह को फैला कर हर स्थान पर अशांति का माहौल पैदा करने में सुख मानते हैं।

अभ्याख्यान पाप अर्थात झूठा कलंक लगाना, द्वेषवश किसी पर झूठा कलंक लगाया हो तो उसका अन्त:करण से प्रायश्चित कर लें। पैशून्य पाप अर्थात चुगली करना यानी इधर की उधर करना, जिससे वैर विरोध बढ़े, ऐसा कभी भी न करें जिससे व्यक्तियों में वैर भाव बढ़े।

रति पाप अर्थात अनुकुल वातावरण, वस्तु व परिस्थितियों में आनन्द और आरति पाप अर्थात प्रतिकूल वस्तु, वातावरण व विषयों में खेद भाव रखना, दु:खी होना।

माया मृषावाद पाप का अर्थ है कपटपूर्वक झूठ बोलना और अठारवां पाप मिथ्यादर्शन शल्य है जिससे व्यक्ति मिथ्या मान्यताओं का सेवन करता है और इसके वशीभूत हिंसा आदि भी करने से नहीं कतराता।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar