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पर अनुशासन के बजाय आत्मानुशासन श्रेयस्कर है: जयधुरंधर मुनि

पर अनुशासन के बजाय आत्मानुशासन श्रेयस्कर है: जयधुरंधर मुनि
श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जयपुरंदर मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र  का वांचन करते हुए कहा मनुष्य के द्वारा भूल होना स्वाभाविक होता है किंतु भूल को स्वीकार करना कठिन है। गलत कार्य होने के बाद झूठ के द्वारा उसे छिपाने का चाहे कितना भी प्रयास किया जाए वह एक ना एक दिन प्रकट होता ही है।
इसके बजाय अपने किए हुए दोषों को सरल भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए। जैसे जातिवंत घोड़ा चाबुक को देखते ही सवार की इच्छा अनुसार प्रवृत्ति करता है उसी प्रकार विनीत शिष्य को गुरु का इंगित आकार समझकर उनके मनोभाव के अनुसार प्रवृत्ति करनी चाहिए।
गुरु की आज्ञा को नहीं मानने वाला एवं कठोर वचन कहने वाला अविनीत शिष्य शांत स्वभाव वाले गुरु को भी क्रोधी बना देता है। जबकि गुरु की इच्छा के अनुसार प्रवृत्ति करने वाला उग्र स्वभाव वाले गुरु को भी प्रसन्न कर लेता है।
सामने वाले के स्वभाव को बदलना भी स्वयं पर निर्भर होता है। यदि कभी क्रोध उत्पन्न हो जाए उसका अशुभ फल सोचकर उसे निष्फल कर देना चाहिए। परवश होकर दूसरों से दमन किए जाने की अपेक्षा अपनी इच्छा से ही तप और संयम के द्वारा अपनी आत्मा का दमन करना ही श्रेष्ठ है।
आत्मा का दमन करना दुष्कर एवं कठिन जरूर है किंतु असंभव नहीं। परानुशासन के बजाय आत्मानुशासन श्रेयस्कर है। आत्मा का दमन करने वाला इस लोक और परलोक में सुखी होता है। एकांत में या प्रकट में कभी भी गुरु एवं धर्म की विपरीत आचरण नहीं करना चाहिए।
गुरु के प्रति यथा भक्ति, विनय व्यवहार करने पर ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। क्योंकि शिष्य की बुद्धि और पात्रता के अनुसार ज्ञान दिया जाता है। जिस प्रकार शेरनी का दूध केवल स्वर्ण पात्र में ही टिकता है उसी प्रकार विनीत शिष्य के ही ज्ञान को ठिकाने की योग्यता रहती है।
बड़ों के द्वारा दी गई शिक्षा को हितकारी मानते हुए उसका अनुसरण करना चाहिए।माया एवं क्रोध से युक्त सावद्य भाषा एवं निश्चयकारी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। प्रबुद्ध व्यक्ति जिस समय जो कार्य करना चाहिए उसी समय करता है। असमय में नहीं करता है। 
असमय में किया गया कार्य सफल नहीं होता। विनय युक्त शिष्य को गुरू आगम के गूढ़ रहस्यों का प्रतिपादन करते हैं। आगम ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने वाला उसमें से अभिनव चिंतन के मोती प्राप्त कर लेता है।
एसएस जैन संघ सैदापेट के प्रतिनिधि मंडल ने मुनि वृंद के समक्ष नववर्ष महा मंगलिक अपने क्षेत्र में करने हेतु विनती प्रस्तुत की।इससे पूर्व प्रातः 8:00 से 9:00 तक समणी प्रमुखा श्रीनिधि, श्रुतनिधि एवं सुधननिधि के सानिध्य में 80 श्रद्धालुओं ने पुच्छिसुणं का 9 बार सामूहिक उच्चारण करते हुए जाप किया।प्रतिदिन पुच्छिसुणं का जाप 8:00 से एवं उत्तराध्ययन सूत्र वांचन 9:00 बजे से 10:00 बजे तक होगा।

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