चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने पर्यूषण पर्व के पहले दिन कहा यह पर्यूषण महापर्व खुद की आत्मा को तपाने का पर्व है। अब तक संसार में रह कर मनुष्य ने संसारी सुख और दुख तो बहुत झेला है लेकिन अब उनसे बाहर निकल कर आत्मा में लीन होने का समय आ गया है।
जो समय बीत गया उसका अफसोस करने से अच्छा जो बचा है उसे सार्थक कर जीवन के कल्याण के लिए तप किया जाए। साध्वी सुविधि ने कहा आठ दिन के पर्यूषण पर्व मनुष्य की आत्मा को जिनवाणी का रस पान कराती है। पर्यूषण में सच्चे मन से तप करने वालों की इच्छा पूरी होगी।
उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र को श्रेष्ठ बतलाया गया है लेकिन दुख की बात है कि लोगों को इस मंत्र पर विश्वास नहीं हो पाता। नवकार महामन्त्र सबसे श्रेष्ठ व घर के दुख हरने वाला है। इस पर सभी को विश्वास करना चाहिए। उसी प्रकार पर्यूषण महापर्व को पर्वाधिराज पर्व कहा जाता है। पर्यूषण का उद्देश्य आत्मा की ओर बढऩा है। इसका स्वागत खीर, हलुवा और माला नहीं बल्कि कुर्बानी और त्याग से किया जाना चाहिए। इसमें जीवन के उत्थान में बाधित बनने वाले कर्मो की कुर्बानी देनी होती है।
तीर्थ पर जाने के लिए मनुष्य को चलना पड़ता है लेकिन पर्व खुद आता है। ऐसे में आये पर्व का त्याग कर जीवन को सार्थक बना लेना चाहिए। इस पर्व में कोई न कोई त्याग जरूर लेना चाहिए। पर्व का पहला कर्तव्य शास्त्रवचन होता है। पहले सांप के डंक मारने पर लोग मांत्रिक के पास जाते थे और मंत्र बोलते ही सांप का जहर उतर जाता था।
मनुष्य को उस मांत्रिक का मंत्र नहीं समझ आता था पर आस्था होती थी। उसी तरह आठ दिनों के पर्यूषण में सुनाए जाने वाले शास्त्रवचन का मतलब समझ आये या ना आये पर सुनना चाहिए। सुनने मात्र से जीवन का जहर खत्म हो जाएगा। पयूषण पर्व के दोरान रोजाना सुबह 8 बजे अन्तगड़ सूत्र वाचन, दोपहर 2 बजे कल्पसूत्र वाचन, 3 बजे विभिन्न धार्मिक पर्तियोगीता का आयोजन रहेगा।