चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने पर्यूषण पर्व के पहले दिन कहा कि यह पर्व खुद की आत्मा को तपा कर ज्ञान दर्शन चारित्र आत्मा की ओर बढऩे के लिए मिला है। सामान्य पत्थर की कीमत नहीं होती लेकिन मूर्ति बन जाने पर कीमत अपने आप ही बढ़ जाती है।
मूर्तिकार की छेनी से अगर पत्थर भागेगा तो उसकी कीमत कुछ नहीं होगी। जैसे मूर्ति बनाने वाले सामान्य पत्थर को भी देवता बना देते हैं ठीक वैसे ही पर्यूषण पर्व में तप, त्याग से भागने वालों की आत्मा कभी भी शुद्ध नहीं हो पाती। यह मौका शुद्धिकरण के लिए मिला है तो शुद्ध कर लेना चाहिए। इसको गंवाया तो जीवन के मूल्यवान पल चले जायेंगे।
मनुष्य तपेगा उतना ही जीवन खिलता जाएगा। तपने से भागने वाले जीवन में कुछ नहीं कर पाते। जिस प्रकार सांसारिक सुख के लिए मनुष्य तपता है उसी प्रकार आत्मा के सुख के लिए भी तपना पड़ेगा। जब आत्म शुद्धि की बात आती है तो लोग पीछे हटने लगते हैं। याद रहे सांसारिक सुख के लिए तपना जीवन को आगे नहीं ले जाएगा।
जीवन को आगे ले जाने के लिए आत्मा को तप कर शुद्ध करना होगा। पर्यूषण की अनमोल घड़ी को गंवाना नहीं चाहिए। आठ दिन में जितनी तपस्या कर लेंगे उतना ही जीवन सुखद हो जाएगा। जीवन मे कुछ भी दिखाने के लिए नहीं करनी चाहिए। दिखाने के लिए तप के कार्य करने पर साफलता नहीं मिलेगी। जीवन में आगे जाना है तो अवसर का लाभ लेने के लिए खुद को तैयार करें।