इंदौर। राष्ट्रसंत डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने सोमवार को कहा कि जैन समाज का महत्वपूर्ण पर्व होता है पर्यूषण पर्व, जिसका जैन समाज में बहुत बड़ा महत्व है। आठ दिनों के आत्मचेतना के इस पर्व में अधिक से अधिक साधना-धर्मआराधना करनी चाहिए।
श्री नगीन भाई कोठारी चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में हृींकारगिरी तीर्थ धाम में दिव्य भक्ति चातुर्मास के 44 वें दिन प्रवचन करते हुए डॉ. वसंतविजयजी म.सा. बोले कि हमेशा किसी से भी बात करते समय अपने विवेक और उपयोग का ध्यान रखते हुए बातचीत करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारे मन में किसी भी प्रकार या हर प्रकार के बुरे विचारों को इस पर्यूषणपर्व के दौरान समाप्त करने के लिए व्रत किया जाता है। मन में किसी भी प्रकार के बुरे विचार को नहीं आने दें ओर तो ओर लोभ, क्रोध भी नहीं करते हुए किसी के प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं लाना चाहिये। बुरे विचारों का त्याग कर ही शांति के मार्ग की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।
डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने यह भी कहा कि सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य की पूर्णत: पालना करनी चाहिए। इस पर्यूषण पर्व के दौरान अधिक से अधिक नवकार महामंत्र का जाप करने की बात कहते हुए डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने कहा कि जीवों को अभयदान दें, अधिकतर समय परमात्मा के ध्यान में लगाना चाहिए। साथ ही भक्ति, साधना, तपस्या, पौषध व प्रतिक्रमण आदि करने चाहिए।
ट्रस्टी विजय कोठारी व वीरेंद्र कुमार जैन ने बताया कि सोमवार सुबह के सत्र में प्रतिष्ठापित मूलनायक परमात्मा पार्श्वनाथजी की प्रतिमा का विधिकारक हेमंत वेदमूथा मकशी द्वारा 50 दिवसीय 18 अभिषेक आज भी जारी रहा।
उन्होंने बताया कि धाम में संतश्री की प्रेरणा से प्रातः के सत्र में प्रतिक्रमण, सामूहिक भक्तामर पाठ, मूल सूत्रों का वाचन तथा शाम को आरती के बाद संगीतमय प्रभुभक्ति का कार्यक्रम आयोजित हुआ। ट्रस्टी जय कोठारी ने बताया कि चातुर्मास प्रवासित डॉ. वसंतविजयजी म.सा. से दर्शन, प्रवचन व मांगलिक श्रवण का लाभ लेने वालों में गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान सहित अनेक राज्यों के शहरों के श्रद्धालू शामिल थे।