जैन धर्म के महापर्व पर्युषण के नौ दिवसीय अनुष्ठान का आगाज 27 अगस्त से
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन धर्म का सबसे बड़ा महापर्व पर्युषण। अध्यात्म की चेतना का जागरण करने का सुअवसर, मोक्ष मार्ग की विशेष आराधना का सुअवसर व मन की बुराइयों को मिटाकर सत्पथ पर आगे बढ़ने की विशेष प्रेरणा प्रदान करने वाले महापर्व पर्युषण के नवाह्निक अनुष्ठान के शुभारम्भ से पूर्व सोमवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को विशेष पाथेय प्रदान करते हुए जहां साधु-साध्वियों को धर्माराधना, आगम स्वाध्याय, ध्यान आदि के लिए उत्प्रेरित किया तो श्रावक-श्राविकाओं को इस महापर्व का पूर्ण लाभ उठाने और अपनी आत्मकल्याण करने के लिए अभिप्रेरित किया।
सोमवार को प्रातः के मुख्य मंगल प्रवचन के लिए आचार्यश्री ‘महाश्रमण समवसरण में पधारे। पर्युषण महापर्व के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री ने लुंचन के संदर्भ में चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने आराध्य की त्रिपदी वंदना की तथा सुखसाता पूछते हुए कर्मों की निर्जरा में भागीदार बनाने की प्रार्थना की तो आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय और श्रावक-श्राविकाओं को सात-सात सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने पर्युषण महापर्व के संदर्भ में चारित्रात्माओं को विशेष आदेश प्रदान किए।
साथ ही इन नौ दिनों में होने वाले विभिन्न धार्मिक उपक्रमों की रूप-रेखा भी प्रदान की। पर्युषण महापर्व अपनी ज्ञान चेतना के विकास का अवसर है, अपनी तपःराधना को जागृत करने का सुअवसर है तो आदमी को मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का विशिष्ट समय है। इसके लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य की पावन सन्निधि में उपस्थित होते हैं और अपने जीवन और अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करते हैं।
आचार्यश्री ने सम्बोधि के माध्यम से पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि गृहस्थ के जीवन में चार पुरुषार्थों की बात होती है। इसे चतुरवर्ग भी कहा गया है। इस वर्ग में अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की बात बताई गई है। गृहस्थ के जीवन में अर्थ की आवश्यकता भी होती है। गृहस्थ के लिए गरीबी अभिशाप है तो गलत तरीके से प्राप्त हुई अमीरी भी अभिशाप है। गृहस्थ को अर्थ के लिए पुरुषार्थ करना होता है। अर्थार्जन में गृहस्थ को साधन शुद्धि, नैतिकता व प्रमाणिकता रखने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपने चरित्र की यत्नापूर्वक रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। वित्त की अपेक्षा आदमी को अपने वृत्त (चरित्र) पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। धर्म का आचरण करने वाले के पास धन न हो और अधर्म का आचरण करने वाले के पास धन हो तो यह धर्म की विफलता नहीं, क्योंकि धर्म का फल तो आत्मा के उत्थान में निहित्त होता है। धर्म का कार्य तो आत्मोदय करना है। गृहस्थ आदमी को धन के साथ धर्म को जोड़े रखने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ को धर्म करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ धर्म के साथ मोक्ष की साधना करे तो मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
आचार्यश्री ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के प्रसंगों को सरसशैली में व्याख्यायित किया तथा पर्युषण काल तक ‘सम्बोधि’ तथा ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ ग्रन्थाधारित प्रवचन को विश्राम देने की घोषणा की।
नवी मुम्बई के पूर्व सांसद श्री संजीव नायक ने आचार्यश्री के दर्शन करने तथा पावन प्रवचन का श्रवण करने के उपरान्त आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आपकी प्रेरणा से हम सभी को नवीन शक्ति प्राप्त होती है।
मुझे आपके दर्शन की निरंतर लालसा रहती है। जब भी मौका मिलता है, आपसे आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने पहुंच जाता हूं। मैं जन्म जैनी तो नहीं, लेकिन कर्म से जैनी अवश्य बनने का प्रयास करता हूं। आपकी वाणी से भी समस्त मानव जाति को प्रेरणा मिलती रहे। आचार्यश्री ने उन्हें पावन पथदर्शन प्रदान किया। बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
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