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पर्युषण अर्थात प्रदूषण से मुक्ति – साध्वी सुधाकंवर

पर्युषण अर्थात प्रदूषण से मुक्ति – साध्वी सुधाकंवर

कोडम्बाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज तारीख 24 अगस्त बुधवार, महापर्युषण पर्व के पहले दिन प.पू. सुधाकवरजी आदि ठाणा 5 के मुखारविंद से:-भारतवर्ष त्योहारों का देश है। यहां पर कई त्योहार मनाए जाते हैं। त्यौहार भी दो प्रकार के होते हैं – लौकिक एवं लोकोत्तर। लौकिक पर्व में आमोद प्रमोद एवं मनोरंजन किया जाता है। लेकिन लोकोत्तर पर्व में ऐसा कुछ नहीं होता है, उसमें अध्यात्म चेतना को जागृत किया जाता है। पर्यूषण पर्व भी लोकोत्तर पर्व है। पर्युषण अर्थात प्रदूषण से मुक्ति। पर्यूषण पर्व स्व में केंद्रित होने के लिए आते हैं। पर्यूषण पर्व आत्मा का उत्सव एवं मैत्री का महा महोत्सव है। पर्युषण पर्व को प्राप्त करके हम अंतर चेतना को जगाए। पर्यूषण पर्व 8 दिनों के लिए आते हैं। अष्ट कर्मों को क्षय करने का संकेत देते हैं। अंतकृत दशांग सूत्र का वाचन करते हुए गौतम कुमार आदि के जीवन पर प्रकाश डाला।

प.पू.सुयशा श्री मसा ने फ़रमाया:-पर्युषण महापर्व का मतलब बाहर की तैयारी छोड़कर अंदर की तैयारी, शुद्धिकरण एवं अपनी प्रवृत्तियों को सुधार कर समाधि मनाना होता है! 8 दिनों में वह धरा पुण्य हो जाती है जहां पर गुरु भगवंत विराजते हैं और उनकी अमृत मयी वाणी सुनने के लिए सैकड़ों हजारों श्रद्धालु आते हैं! हमारी जीवन यात्रा में हम परिवार, हंसी खुशी, सुख दुख, और आर्थिक समस्याओं का सामना करते हैं! सुख दुख हमारी इच्छाओं पर हमारे परिवार पर और हमारे दोस्ती पर निर्भर रहता है! आनंद की प्राप्ति अंतःकरण से होती है!

हमारे शारीरिक शक्ति है तो हम जप तप, योग, भक्ति, शादी, घूमना फिरना सब कुछ कर सकते हैं! शारीरिक शक्ति नहीं है तो यह सब संभव नहीं है! जब हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है तो हमें उन लोगों को सहयोग देना चाहिए जो हमारे साथ शुभचिंतक है! जब हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहती है तब हमें हमारे पैरों पर खड़ा रहना पड़ता है और हमारे घर वालों की सपोर्ट की हमें जरूरत पड़ती है!

ज्यादातर हमें समाज की चिंता रहती है कि लोग क्या कहेंगे..? लेकिन तकलीफ पड़ने पर समाज के सभी लोग काम नहीं आते सिर्फ घरवाले या चंद अपने ही काम आते हैं!इसलिए हमें हमारे शुभचिंतकों का सपोर्ट करना चाहिए! साधारणतया हमारी जिंदगी में तेजी और मंदी का मतलब नफे और नुकसान से होता है! पुरुषार्थ को पुण्य का सहारा मिल जाए तो वह तेजी है और पुण्य का सहारा ना मिले तो वह मंदी है!

पुण्य कहीं से आता नहीं है उसे हमें उपार्जन करना पड़ता है! हम इस जन्म में पुण्य उपार्जन नहीं करते हैं तो पहले का पूरा पुण्य खत्म हो जाता है! हमारा पुराने पुण्य खर्च के साथ-साथ नया पुण्य उपार्जन की मेहनत करते रहें तो जीवन आनंद से गुजरेगा!लेकिन हम कर्म बांधते ज्यादा है और काटते कम है! हम चाहें तो बहुतों का भला या कम से कम एक का भला तो कर ही सकते हैं!

हम हमारी जिंदगी में हमारे मनपसंद घर में, मनपसंद खाना पीना, घूमना फिरना सब करते हैं फिर भी दुखी रहते हैं! लेकिन हमारे साधु साध्वी एक जगह से दूसरी जगह विहार करते रहते हैं, उनका स्थायी ठिकाना नही रहता है! गोचरी में उनके नियमानुसार जो मिलता है, जैसा मिलता है वैसा ही आहार ग्रहण करते हैं! इन चीजों में उनके कोई डिमांड नहीं रहती है, फिर भी वे आनंद से रहते हैं! प्रभुबल चाहिए तो हमें कर्मों के निर्जरा करनी होगी!

शुभ कर्म, अशुभ कर्म, शुभ बल और अशुभ बल सब साथ साथ चलते हैं! हमें इन 8 दिनों में जपतप, धर्म ध्यान, सामायिक, प्रतिक्रमण करके सभी से क्षमा याचना करके अपनी आत्मा का शुद्धीकरण करना होगा! तभी आनंद और सुख की प्राप्ति होगी! औपचारिकता के लिए की गई भक्ति सामायिक या प्रतिक्रमण का कोई पुरुषार्थ नहीं होता! प्रवचन के पश्चात धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

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