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ज्ञान वाणी

परिस्थिति नहीं मनस्थिति को बदलें: जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. जयधुरंधर मुनि ने तिन्नानूर स्थित हरकचंद कोठारी के निवास पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संसार संयोग और वियोग का चक्र है, जहां कभी अपने प्रिय, इष्ट, कांत का संयोग होता है तो उसी का वियोग भी हो जाता है। संयोग से सुख की अनुभूति होती है तो वियोग मनुष्य को दुखी कर देता है।
कभी अनिष्ट का संयोग एक व्यक्ति को व्यथित कर देता है तो किसी अनिष्ट का वियोग सुखाभास भी करा सकता है। हर साधक का लक्ष्य होना चाहिए कि संयोग और वियोग के घेरे से बाहर निकलकर अयोग की स्थिति तक पहुंचे, जहां मन-वचन और काया रूपी योग को पूर्णत: विराम लग जाए।
उन्होंने कहा परिस्थिति को बदलना आसान नहीं है किंतु परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढालना सरल है। विचारों की धारा को मोड़ देते हुए जिस समय संयोग-वियोग के कारण उत्पन्न सुख-दुख में साधक समभाव रखता है, उस समय उसकी मंजिल निकट आ जाती है।  इसलिए परिस्थिति नहीं मन की स्थिति को बदलने की जरूरत है।
यह चिंतन करना चाहिए जिस किसी का भी संयोग हो रहा है, उसका वियोग एक न एक दिन अवश्य होगा तो फिर  क्यों संयोग के समय खुशी मनाएं और वियोग के समय गमगीन रहें। 
जयकलश मुनि ने कुछ पल की जिंदगानी, इक रोज सबको जाना… गीतिका का संगान किया। उन्होंने कहा जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है।

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