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परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना सीखें : देवेंद्रसागरसूरि

परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना सीखें : देवेंद्रसागरसूरि

यदि परिस्थितियों के अनुसार आप खुद को ढालना जान गए तो परेशानी कभी हावी नहीं होती, पर यह बात जितनी सरल लगती है, इंसान उतनी ही सहजता से इस बात को नहीं समझ पाता। समझ भी जाए तो अमल में नहीं ला पाता। उपरोक्त बातें श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कही। वे आगे बोले कि दरअसल, लचीलापन मनोवैज्ञानिक भाषा में किसी समस्या के आने पर उससे निकलने का तरीका है। हमें समझना होगा कि हर चीज केवल काली या सफेद नहीं होती। इसके बीच एक स्लेटी रंग भी होता है। सौ प्रतिशत आपको ऐसा ही रहना है या अपना तरीका ही ठीक है, यह मानसिकता समस्या से निपटने में मदद नहीं कर सकती।

इसलिए कहा जाता है कि लचीले हों तो बुरा समय आपका ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता। कहते हैं न कि तूफान तेज हो तो जो पेड़ सीधा तना हुआ रहता है, उसके उखड़ने का डर रहता है। पेड़ लचीला हो तो तूफान उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। हां, वह पेड़ तूफान के दौरान अत्यधिक झुक जाता है या बुरी तरह झकझोर दिया जाता है, लेकिन टूटता नहीं। दरअसल, लचीले होने का मतलब है चाहे जैसी परिस्थिति हो हर परिस्थिति में ढल जाना। लचीलापन का अर्थ यह है कि आप मुश्किल परिस्थिति से बाहर निकलने का बेहतर तरीका खोजें। ऐसा हल निकालें कि न हमें परेशानी हो, न दूसरों को। उन्होंने यह भी कहा कि हम सबमें एक कोपिंग स्किल होती है यानी किसी समस्या के आने पर उससे निपटने की क्षमता। यह लचीलेपन से सीधे जुड़ी है। कोई बहुत परिपक्व होता है तो वह समस्या से निकलने का स्वस्थ उपाय अपनाता है। जैसे-ध्यान, योग, डायरी लिखना या कोच की मदद लेना आदि। पर जिनकी कोपिंग स्किल खराब होती है, वे अस्वस्थ तरीका अपनाते हैं।

जैसे कोई नशे को अपनाता है तो कोई काम को हल्का मानकर भविष्य पर टाल देता है। लचीलापन अच्छा है, यदि किसी काम को लेकर अड़ियल रवैया न हो, बल्कि सबको मिलाकर चलने की निपुणता हो। अपनी योग्यता का सदुपयोग करना ही लचीलापन है। लचीला व्यक्ति हर स्थिति का लाभ उठाना जानता है। वह अकेलेपन को भी एकाग्रता में बदल सकता है। यदि आपके मन में कोई शानदार विचार आता है तो बिना देर किए उस पर एक्शन लेना चाहिए। इससे पहले कि आपका दिमाग निष्क्रियता की ओर जाए, आपको उस विचार को जमीन पर उतारने के लिए तैयार होना चाहिए। विचार आने और सक्रिय होने के बीच का यह अंतराल ही जिंदगी की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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