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परिषह रूपी परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही साधना की कसौटी है: जयधुरंधर मुनि

परिषह रूपी परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही साधना की कसौटी है: जयधुरंधर मुनि

श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जयपुरंदर मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र  का वांचन करते हुए कहा संयम के कठोर मार्ग पर चलने वाले साधक के जीवन में परिषह का आना स्वाभाविक है लेकिन वे परिषह वस्तुतः बाधक नहीं अपितु कर्म करने में सहायक एवं उपकारक होते हैं।

भगवान महावीर स्वामी के साढे 12 वर्ष साधना काल के दौरान भी अनेक परिषह एवं उपसर्ग उपस्थित हुए लेकिन उन्होंने उनका डटकर सामना किया।

सच्चा साधक कष्ट आने पर उद्विग्न नहीं होता घबराता नहीं और ना ही अपने मार्ग से विचलित होता है। वह धैर्य से समभाव पूर्वक उन्हें  सहन करते हुए संकल्पित बना रहता है। जो शरीर को नाजुक बनाकर रखता है वह कष्ट सहन करने में असमर्थ होता है।

संयमी साधक और अज्ञानी व्यक्ति दोनों के जीवन में कष्ट आते हैं लेकिन अज्ञानी जहां असहनशील बन हाय त्राय करते हुए नवीन कर्मों का बंध करता है। वहीं एक संयमी साधक मानसिक रूप से तैयार रहते हुए मरण तुल्य कष्ट आने पर भी मृत्यु का वरण करने के लिए तत्पर हो जाता है किंतु अपने लिए व्रतों में कोई दोष नहीं लगाता।

जिस प्रकार एक विद्यार्थी अध्ययन काल के दौरान अनेक परीक्षा देते हुए उत्तीर्ण बन आगे बढ़ता है उसी प्रकार जीवन में आने वाले परीषह रूपी परीक्षा में ना केवल उत्तीर्ण अपितु शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त करते हुए आगे बढ़ता है।

परीषह रुपी परीक्षा में उत्तीर्ण होना ही साधना की सच्ची कसौटी है। प्रतिकूल परिस्थितियों से घबराने के कारण राई जितना संकट भी पहाड़ जितना लगता है।जो व्यक्ति दुख से जितना ज्यादा भागने का प्रयास करता है दुख उसके पीछे आते रहते हैं। जबकि दुखों से मुकाबला करते ही वे परास्त होकर भाग जाते हैं।

मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र के दूसरे अध्ययन के अंतर्गत 22 प्रकार के परीषहों का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन किया।मुनि वृंद के सानिध्य में प्रतिदिन प्रातः 8:00 से 9:00 बजे तक पुच्छिसुणं जाप एवं 9:00 बजे से उत्तराध्ययन सूत्र पर विवेचन होता है।

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