चेन्नई. किलपॉक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर ने कहा कर्मों की विचित्रता यह है कि जिसे भूख लगी है उसको खाना नसीब नहीं होता और जिसके पास धन है उसे भूख नहीं लगती।
ज्ञान को सिद्ध करना है तो पहले परिवार में किस तरह रहना चाहिए यह अनुभव होना जरूरी है। परिवार की खुशियों से बढक़र कुछ नहीं हैं। विनय, नम्रता, सहनशीलता परिवार में रहने से ही आती है। जन्म से ये गुण नहीं आते।
सहिष्णुता, ज्ञान साधना ,अध्यात्म साधना के लिए जरूरी है। इसका विकास परिवार में रहकर ही हो सकता है। सहन करना स्त्री का धर्म है। उन्होंने उपमिति भव प्रपंचा ग्रंथ की मूल कथा की शुरुआत की।
उन्होंने कहा यह ग्रंथ आत्मा का इतिहास व भूगोल है। यह अर्थशास्त्र भी है और सर्वस्व है। कोई विषय बाकी नहीं है जो इसमें नहीं हैं।