गुजरातीवाड़ी श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित आचार्य मेघदर्शनसूरीश्वर ने विशाल प्रवचनसभा में बताया कि शुद्ध ज्ञान और शुद्ध क्रिया से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। हमें ज्ञान पाने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए, क्योंकि कौनसी क्रिया कैसे करनी चाहिए, क्यों करनी चाहिए, कहां करनी चाहिए, कब करनी चाहिए ये सब बातें जानने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। ज्ञान पाने के बाद भी उसके अनुसार क्रिया नहीं करेंगे, तो कोई फायदा नहीं। मुंबई जाने के लिए रास्ते का ज्ञान पाने से कुछ नहीं होता, हमें उसके लिए मुंबई की गाड़ी में बैठने की क्रिया भी करनी पड़ेगी। कोई भी गाड़ी में बैठ गए लेकिन कहां जाना है, कौन सी गाड़ी में जाना है उसका ज्ञान नहीं होगा तो भी मुंबई नहीं पहुंचेंगे।
आचार्य ने बताया कि परमपद यानी मोक्ष का लक्ष्य और संयम जीवन का पक्ष रखना आवश्यक है। लक्ष्य और पक्ष को सफल बनाने के लिए परलोक की ओर दृष्टि रखनी चाहिए। इससे पापों की भीती और परमात्मा से प्रीति शुरू होगी। प्रभु प्रीति और पाप भीति ही मानव भव को सफल बनाने का अमोघ इलाज है।
उन्होंने कहा कि मानव भव पाने के पश्चात हम अगर संयम जीवन स्वीकारते हैं तो श्रेष्ठ है किंतु अगर संयम जीवन नहीं मिले तो भी कम से कम परमात्मा का अनुग्रह, गुरुदेव की कृपा, माता-पिता के आशीर्वाद एवं गरीब तथा पशु-पक्षी की दुआ तो हमें पानी ही चाहिए। हमारी परमात्मा के प्रति श्रद्धा- समर्पितता ही उनका अनुग्रह है। गुरु के प्रति भक्तिभाव- श्रद्धा- समर्पितता उनकी कृपा से ही मिल सकती है। माता-पिता के प्रति सम्मान- आदर ही उनका आशीर्वाद है और गरीब, अबोल पशु-पक्षी के प्रति हमारा करुणा का भाव ही उनकी हमारे प्रति दुआ है। सामने वाले को कुछ भी करना नहीं है। जो करना है, वह हमें ही करना है। हमारी श्रद्धा- समर्पितता ही अनुग्रह- कृपा- आशीर्वाद- दुआ बनते हैं। प्यार मांगने से नहीं मिलता, देने से मिलता है। परिवार के सभी सदस्यों को प्यार देते रहिए। प्यार देना मतलब है समय देना। परिवार के लिए पैसा कमाते हो तो उनके लिए समय भी अवश्य देना चाहिए।