चेन्नई. रविवार को विल्लीपुरम जैन स्थानक भवन की धर्मसभा में श्रमणसंघीय उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने ”आज भाषा वचन कैसे होने चाहिए विषय पर व्याख्यान दिया।
उपाध्याय श्रीजी ने कहा कि मनुष्य को जन्म से जुबान मिलती है लेकिन भाषा नहीं। भाषा उसको जैसी सिखाई जाती है, वह वैसा ही बोलता है। भाषा जुबान की भी होती है और दिल की भी। दिल की भाषा से ही दुआ और बददुआ निकलती है।
हम जो सुनते हैं उससे हमारा मन बनता और बिगड़ता है। वैसे ही जो हम सुनाते हैं, उससे सुनने वाले का मन बनाता और बिगड़ता है। वचन ऐसे बोलने चाहिए कि जो किसी के जख्मों पर मल्हम का काम करे।
मनुष्य को भाषा परिवार से मिलती है। परिवार में विश्वास की स्नेह सौहार्द प्यार की भाषा अगर बोली जाती है तो उसे परिववार में सदा शान्ति एवं मंगल का वास रहता है। परिवार में कभी भी बददुआ की भाषा, गलत भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। जैसी भाष घर में बोली जाती है वैसा माहौल घर में बनता है, वैसे ही वाइब्रेशन घर में निर्माण होते हैं। गुरुदेव ने आगे कहा कि शुभ कार्य करते समय बाधाएं आने पर भी जो उस कार्य में लगा रहता है वह परम पुरुषार्थी और सौभाग्यशाली होता है। अशुभ कार्य करते समय बाधाएॅं नहीं आयी तो अपना दुर्भाग्य समझना चाहिए।
उपाध्याय प्रवर के तीन दिवस के विल्लुपुरम प्रवास में प्रिया कर्नावट ने सुखी दाम्पत्य जीवन का शिविर लिया। प्रियंका चोरडिय़ा, प्रिती नाहर, राजकुमारी छाजेड़, संगीता ओस्तवाल ने अष्टमंगल ध्यान साधना का और महावीर तालेड़ा, गौरव खिंवसरा, संजय चोरडिय़ा ने पुरुषाकार पराक्रम ध्यान साधना का शिविर लिया। आज धर्म सभा में कडलूर-कुंभकोणम, पांडीचेरी से बड़ी संख्या में गुरुभक्त पधारे, चेन्नई से सुवालाल कर्नावट, महावीर कर्नावट परिवार सहित उपस्थित रहे। गुरुदेवका आगे का प्रवास पांडिचेरी की तरफ होने की संभावना है। दिलीप गुलेछा ने यह जानकारी दी।