विजयनगर स्थानक भवन में विराजित साध्वीश्री प्रतिभाश्री जी ने वाचना, पृच्छा से आगे बताते हुए आज परियेतना की व्याख्या करते हुए कहा कि परियेतना अर्थात जानने की जिज्ञासा, या पुनरावर्तन। जिनके मन मे जानने की जिज्ञासा हो वही पृच्छा यानी प्रश्न कर सकता है। “करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुझान” बार बार ज्ञान की या स्वाध्याय की पुनरावर्ति करने से ज्ञान की अभिवृद्धि होती है व इससे स्वर व व्यंजन लब्धि की प्राप्ति होती है।
साध्वी दीक्षितश्री ने आगमों का विवेचन सुनाते हुए श्रावक के पांच सम्यक के बारे में बताते हुए शिष्य का गुरु के प्रति कैसा आचरण हो इसकी व्याख्या की। साध्वीप्रेक्षाश्री जी ने भगवती सूत्र के माध्यम से अट्ठारह पापस्थान में मिथ्या,शल्य,दर्शन के बारे में बताते हुए मिथ्यात्व व सम्यक्त्व में अंतर को स्पस्ट किया।
मिथ्यात्व व्यक्ति गुरु को नहीं मानता है।दानवीर भामाशाह श्रीमान बाबुलाल जी रांका ने साध्वीश्री के दर्शन कर तप की सुखसाता पूछते हुए कर्नाटक में चतुर्मासों में नही उपयोग आने वाले बेश कीमती स्थानकों का वृद्ध साधु संतों व अन्य धार्मिक क्रियाओं हेतु उपयोग करने संवंधित योजना पर विस्तार से चर्चा की। ट्रस्ट के अध्यक्ष राजेन्द्र कुमार कोठारी ने हार्दिक अभिनंदन किया।संघ के मंत्री कन्हैया लाल सुराणा ने आगामी पर्युषण तक के कार्यक्रमो की जानकारी उपलब्ध कराते हुए सभी के सहयोग की अपील की।