नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने फरमाया कि आत्म बन्धुओ तीर्थंकंरो ने धर्म का प्रवर्तन किया। 2 प्रकार का धर्म श्रुत धर्म, चारित्र धर्म । श्रुत धर्म दो प्रकार अणगार धर्म आगार धर्म ।
आगार धर्म धारण करने वाला भी 14 गुणस्थान को पार करके देव गति को प्राप्त कर सकता हैl भगवान ने ऐसा उपदेश नहीं दिया कि पूरा धन का त्याग करो। परिग्रह में कुछ मर्यादा करो। संसारी का मान धन में है। धन है तो सम्मान है जब तक श्वास है तब तक धन की आवश्यकता है धन अपने पास रखो। अपना परिग्रह अपने पास रखो। अपने जीवन निर्वाह के लिए किसी के आगे हाथ फैलाना ना पडे, दूसरों के सामने हाथ फैलाना भी भारी लगता है वृद्ध अवस्था में थोड़ा परिग्रह अपने पास रखो । जवानी में गरज नहीं होती है बुढ़ापा गरज वाला है।
बुढ़ापे में हर चीज की गरज होती हैं वृद्धावस्था साधु का कुछ नहीं बिगाडता है। गृहस्थ का बिगड़ता है जीवन को अच्छा बनाना है तो पकड़ अपने हाथ में रखना । अपने अधिकार की वस्तु अपने पास रखना । आनन्द श्रावक के पास इतनी धन सम्पत्ति थी मगर उन्होनें भी परिग्रह की मर्यादा की। ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए बताया कि व्रत नियमों के पालन से हम पहाड़ जितने पाप को राई जितना कर सकते हैंl