जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में श्रावक के 12 व्रतों के शिविर के अंतर्गत पांचवें परिग्रह परिमाण व्रत का विवेचन करते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा सुख की प्राप्ति हेतु श्रावक को पुण्यशील होना जरूरी है और पुण्यवाणी बढ़ाने के लिए व्रत की आराधना करना आवश्यक है।
व्रत अर्थात घेरा जिससे साधक अपनी संग्रह वृत्ति को सीमित कर डालता है। जैसे ही श्रावक पांचवें व्रत के अंतर्गत परिग्रह का परिमाण कर लेता है, उसकी आत्मा के परिणाम भी बदल जाते हैं। पांचवा व्रत ग्रहण किए बिना जीवन ब्रेक रहित गाड़ी की तरह हो जाता है जिसके कभी भी दुर्घटना होने की संभावना रहती है।
ऐसी गाड़ी चलाते समय मन में जिस प्रकार भय अशांति रहती है उसी प्रकार अगर श्रावक परिग्रह का परिमाण नहीं करता है तो उसके पास संपत्ति होते हुए भी चैन और शांति नहीं रहती ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी के नौ ग्रह अनुकूल नहीं है तो दुख होगा लेकिन यह परिग्रह अगर मर्यादित नहीं है तो और ज्यादा दुख होगा ।
सीमाएं बांधने से देश की रक्षा होती है , पाल बांधने से बाढ़ प्रलय आदि से बचाव हो जाता है, चार दीवार बनाने से घर की सुरक्षा हो जाती है, ठीक इसी प्रकार आत्मा की कर्म बंध से सुरक्षा के लिए परिग्रह का परिमाण किया जाना चाहिए। अनावश्यक परिग्रह से निवृत्त होने के लिए सीमा बांधनी जरूरी है।
इच्छा आकाश के सामान अनंत होती है। जिस प्रकार आकाश का कोई छोर नहीं होता उसी प्रकार इच्छाएं भी असीम होती है। इच्छा का गड्डा भरने का एकमात्र उपाय मर्यादित जीवन है। तृष्णा ,ममत्व आदि घटाने के लिए परिग्रह का परिमाण करना आवश्यक है। जिस समय श्रावक अपनी इच्छाओं का अंत कर देता है उसे अनंत आत्मा सुख की प्राप्ति हो जाती है ।
मर्यादित जीवन होने के कारण वहां धन संग्रह आदि की आकांक्षा नहीं अपितु त्याग की भावना होती है अगर व्रत नहीं लिया हुआ है तो मन रुकता नहीं है । एक इच्छा की पूर्ति होती है इतने में दूसरी इच्छा पैदा हो जाती है । सभी दुखों का मूल कारण कामना, आकांक्षा , तृष्णा आदि का होना है ।संसार में धन तो सीमित है किंतु इच्छाएं असीमित है।
इच्छाओं पर नियंत्रण करने के लिए तथा लोभ को घटाने के लिए पांचवें व्रत में नौ प्रकार के परिग्रह खुली जमीन, बंद मकान , चांदी, सोना, रोकड़, धन्य ,दो पैर वाले प्राणी ,चार पैर वाले प्राणी एवं अन्य धातु का परिमाण किया जाता है ।इस व्रत में व्यक्ति विशेष और व्यापार की दृष्टि से अलग-अलग मर्यादा रखी जाती है। धर्मसभा में पेरंबूर से मरूदेवी महिला मंडल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।