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परहित में ही स्वहित निहित होता है: जयधुरंधर मुनि

परहित में ही स्वहित निहित होता है: जयधुरंधर मुनि
वेपेरी स्थित जयवाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा मार्ग पर चलने से ही मंजिल की प्राप्ति हो सकती है। संसार एक चक्र के समान होता है जहां पर अनादि काल से जीव भटकता आ रहा है।
उस चक्रव्यू का भेदन कर मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ाने वाला ही मोक्ष मंजिल को प्राप्त कर सकता है। जीवन में गति के साथ प्रगति भी होना जरूरी है। संसार में दो प्रकार का मार्ग होता है एक स्वार्थ का तो दूसरा परमार्थ का। साधक को परमार्थी बनते हुए स्वार्थ से दूर रहना चाहिए। स्वार्थ का त्याग करना भी एक बहुत बड़ी तपस्या होती है।
खुद के लिए जीने वाले तो दुनिया में बहुत होते हैं लेकिन जो दूसरों के लिए जीता है, उसी का जीवन महान बनता है। जो दूसरों की परवाह करता है, पूरी दुनिया उसकी परवाह करती है और जो स्वयं की ही परवाह करता है, उसकी कोई भी परवाह नहीं करता। मनुष्य की स्वार्थ परायणता इतनी बढ़ चुकी है जिसके कारण स्वार्थ पर आंच आने पर वह कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है।
कुछ विरले ही ऐसे व्यक्ति होते हैं जो दूसरों के लिए स्वयं के प्राणों की आहुति तक देने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे बलिदान करने वाले महापुरुषों से ही धर्म टिकता है । जो दूसरों का भला करता है उसका स्वयं का भला स्वतः ही हो जाता है क्योंकि परहित में ही स्वहित निहित होता है।
धर्मसभा का संचालन के.एल जैन ने किया। इस अवसर पर शकुंतला मेहता 9 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए, जिनका संघ की ओर से सम्मान किया गया। मुनि वृंद के सानिध्य में 11 अगस्त को आचार्य शुभचंद्र का 81 वां जन्म दिवस सामूहिक भिक्षु दया के साथ मनाया जाएगा।

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