चेन्नई. कोंडितोप स्थित सुन्देशा मूथा भवन में आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि कली अपने ढंग से खिलती है और खुश रहती है, फूल अपने ढंग़ से मुस्कुराता है और खुश है। महावीर अपने ढंग से जिए और निर्वाण को प्राप्त हुए।
हम अपने ढंग से जी रहे हैं फिर भी नाखुश है, मात्र निर्माण कर रहे हैं जो गिरने वाला है खंडहर होने वाला है। नदी अपने ढंग से बहती है, धरती को हरा भरा करती है, प्यास बुझाती है और खुश है।
अपने ढंग से जीते है प्यास बुझाने के लिए दूसरे का मटका फोड़ते है, घर उजाड़ते हैं। फिर भी नाखुश हैं। हम बीमार है, मधुर दूध भी कड़वा लगता है। मुख का स्वाद खराब है। दूध तो अच्छा है। पेट की भूख मिटाने के लिए आदमी दूसरों की स पदा छीन लेता है।
उन्होंने कहा कि परम स्वास्थ्य ही स यक धन है, स पति है। महावीर ने ऐसा धनतेरस मनाया कि निर्वाण को प्राप्त हो गए। हम महावीर के देशना को भूल गए। धनतेरस की मथानी से जीवन का मंथन करो, धन तेरस यह संदेश सुनाने आया है। यह जीवन के मंथन का है। यह जीवन को नया करने का अवसर है।