चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वीवंृद कंचनकंवर व डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने कहा दो शब्द हैं स्वार्थ और परमार्थ। यह संसार स्वार्थमय है, जब तक इसकी पूर्ति होती है तब तक इसे अच्छे लगते हैं, नहीं तो पराए। परमार्थ का अर्थ है सबसे उच्च कोटि का अर्थ।
प्रभु ने भवि जीवों को धन के उदाहरण देकर देशना दी क्योंकि भविजीव धन में उलझा हुआ है। उन्होंने ज्ञान, दर्शन, चारित्र को रत्नत्रय बताया। सांसारिक रत्नों की प्राप्ति और छोडऩा दोनों ही दुख का कारण है जबकि प्रभु के बताए रत्नों की प्राप्ति हो जाए तो शाश्वत सुख मिलता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र से युक्त आत्मा का परिचय करना परमार्थ है।
स्वार्थ बाह्य है, इससे संसार बढ़ता है और परमार्थ आन्तरिक है, संसार घटता है। परमार्थी बनने के लिए हमें स्वयं अपने में जीना होगा। मेरे-तेरे में जीएंगे तो इस संसार में भटक जाएंगे, अपने में जीएं। उन्होंने नमीराजा ऋषि और उनकी परीक्षा लेने आए इंद्र का प्रसंग बताया।
साध्वी डॉ.उन्नतिप्रभा ने कहा इस संसार में जब मनुष्य का जन्म होता है तो अकेला ही आता है, यहां आने के बाद उसे माता-पिता, घर, सुख-सुविधाएं मिलती है और जब वापस जाता है तब भी अकेला ही जाता है, सारे सांसारिक रिश्ते, वस्तुएं यहीं रह जाते है। एकमात्र कर्म ही हैं जो आत्मा के साथ आते और जाते हैं, वे हर क्षण हर समय आत्मा के साथ रहते हैं।
मनुष्य स्वयं ही कर्मों का कर्ता और भोक्ता है। उसके द्वारा किए हुए कर्मों से ही सुख-दुख भोगता है। परिवार, पद, प्रतिष्ठा कुछ भी साथ नहीं जाएगा फिर भी इनसे उलझा है।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा सम्यक तपस्याएं धर्मध्यान के साथ पूरी होनी चाहिए। तपस्यार्थी के लिए जिनवाणी श्रवण और प्रतिक्रमण अवश्य होना चाहिए।
चातुर्मास समिति द्वारा तपस्यार्थी ‘युवारत्न’ आनन्द खारीवाल का सम्मान किया गया। इस अवसर पर पाली, जोधपुर सहित अनेक स्थानों के श्रद्धालु उपस्थित थे। १८ सितम्बर को आचार्य शिवमुनि की जयंती मनाई जाएगी।