कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज सोमवार तारीख 10 अक्तूबर को परम पूज्य सुधाकवर जी मसा आदि ठाणा 5 के सानिध्य में विजय प्रभा जी मसा ने फ़रमाया कि परमात्मा ने दान शील तप और भावना को मोक्ष जाने का उत्तम मार्ग बताया! श्री वेणी चंद जी मसा की कठोर तपस्या के गुणगान करते हुए उनके जीवन में तपोयोग से घटित दृष्टांत बताये इसमें चित्तौड़ किले का दृष्टांत उल्लेखनीय था! पूज्य सुयशा श्रीजी मसा ने फरमाया कि भूख लगी है तो भोजन कर सकते हैं, प्यास लगी तो पानी पी सकते हैं, एक जगह से दूसरी जगह जाना है तो वाहन का प्रयोग कर सकते हैं!
वैसे ही गुरु भगवंतो के दर्शन लाभ, जिनवाणी लाभ, सामायिक का धर्म लाभ भी ले सकते हैं! लेकिन इनमें से कुछ भी ग्रहण करने की पात्रता एवं क्षमता हममें होनी चाहिए, वरना सब व्यर्थ है! बीज की पात्रता अंकुरित होने में है, लेकिन खाद पानी और मिट्टी का सहयोग भी जरूरी है! ये सब एक दूसरे के पूरक है! कभी-कभी एक छोटा सा प्रसंग भी हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन ला देता है, हमारे जीवन की कायापलट हो सकती है! ऐसी कायापलट धारदार हथियार के समान होती है! वैसी धर्म के प्रति पवित्र पात्रता हमारे में होनी चाहिए!
कुछ लोगों की पात्रता उस कुल्हाड़ी की तरह होती है, जो एक बार नहीं लेकिन बार-बार वार करके पेड़ को काट देता है! वैसे ही बार-बार गुरु भगवंतों के संपर्क में आने से कुछ लोगों की कायापलट हो जाती है! कुछ लोगों की पात्रता और स्थिति और समय के अनुसार बदलती रहती है! ऐसे लोग गुरु भक्तों के संपर्क में आते ही बहुत भावुक हो जाते हैं और संपर्क टूटते ही पहले जैसी स्थिति में आ जाते हैं! अंतिम श्रेणी के कुछ लोगों की पात्रता ऐसी होती है जिनकी तुलना बिन धार के हथियार से की जा सकती है! परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, कितने भी अच्छे गुरु भगवंत और उपदेश मिले तो भी उनकी मन स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता, वे चिकने घड़े के समान रहते हैं!