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ज्ञान वाणी

परमात्मा को जानना हो तो उनका धर्म और धीरज जानें : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

परमात्मा को जानना हो तो उनका धर्म और धीरज जानें :  उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

 

चेन्नई. रविवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि सुधर्मास्वामी जिन्होंने विश्व को परमात्मा प्रभु की वाणी और ज्ञान प्रदान किया वे प्रभु के गंधर्व ही नहीं उत्तराधिकारी भी हैं। जम्बूस्वामी जो परमात्मा के समवशरण में देव गति में आए थे और सुधर्मास्वामी के शिष्य और अंतिम केवली बने। जम्बूस्वामी उनके प्रभामंडल की वैराग्यधारा और प्रभाव से प्रभावित होकर दीक्षा ग्रहण करते हैं उनके साथ पांच सौ चोरों की टोली भी दीक्षा ग्रहण करती है।
गलत कार्य करने में यदि सफलता न मिले तो यह सौभाग्य की बात है और पाप कार्य में सफलता मिलना दुर्भाग्य की बात है। जम्बू स्वामी का एक दिन पहले तक कोई निर्णय नहीं था वैराग्य ग्रहण करने का। वे जैसे ही सुधर्मास्वामी के पास जाते हैं तो एक पल में सबकुछ बदल जाता है और माता-पिता के पास आज्ञा लेने जाते हैं, रास्ते में द्वार की शिला कुछ कदम दूरी पर सामने गिरती है और उसी क्षण वे पुन: लौटकर सुधर्मास्वामी से ब्रह्मचर्य और शीलव्रत के पच्चखान ग्रहण करते हैं। जीवन बदलने के लिए किसी की आज्ञा की आवश्यकता नहीं होती है, यह मनुष्य को स्वयं तय करना चाहिए कि वह कैसा जीवन जीना चाहता है। आज्ञा तो मात्र वेश के लिए चाहिए, जीवनशैली के लिए नहीं। हमें भी अपने जीवन को बदलने के लिए अपनी अन्तरात्मा की आज्ञा माननी चाहिए।
जम्बूस्वामी के दीक्षा लेने पर कितने ही लोग परेशान हो जाते हैं कि इसे ऐसा क्या मिला है जो कल तक विवाह की तैयारी करने वाला आज दीक्षा ले रहा है। वे पूछ रहे हैं कि ऐसे लोग जिनका जीवन पापों में बीता है वे भी इसके पीछे क्यों चल पड़े हैं। ऐसे अनेकों प्रश्न श्रमण, ब्राह्मण, श्रावक और साधुजन करते हैं। जम्बूस्वामी कहते हैं कि ऐसा एकांत हितकारी, अनूठा और विलक्षण धर्म, जिसके रास्ते पर निश्चितता है।
जम्बूस्वामी का पहले दिन तक जिनके साथ विवाह होना तय था वे आठों कन्याएं भी उनसे परमात्मा का धर्म जानती हैं जिन्हें वे कथाओं के माध्यम से प्रभु समझाते हैं और उनकी शंकाओं का समाधान देते हैं। जम्बूस्वामी कहते हैं कि ऐसा अनन्त हितकारी धर्म दूसरा कोई नहीं है। वे इस तरह साहुसमीक्षा करते हैं कि उनके मन की सारी दुविधाएं और बुराईयां दूर हो जाती हैं। हमें भी किसी पर कमेंट या समीक्षा इस तरह करनी चाहिए कि सुननेवाले के मन की सारी दुर्भावनाएं समाप्त हो जाए। जम्बूस्वामी के शब्दों से जीवनभर पाप करने वाले उन पांचसौ चोरों के मन की भी सारी बुराइयां निकल जाती है।
सुधर्मास्वामी कहते हैं कि तीर्थंकर परमात्मा के पास तीर्थ स्थापित करने का अपना विजन और दृष्टिकोण होता है जो हर सर्वज्ञ के पास यह नहीं होता है। मात्र ज्ञान के आधार पर कोई भी तीर्थ स्थापित नहीं कर सकता, इसके लिए धीरज और दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ऐसा सामथ्र्य तीर्थंकर में ही होता है। किसी को जानना हो तो उसका ज्ञान, दृष्टिकोण और शील को जानें। सुधर्मास्वामी से जम्बूस्वामी परमात्मा का वास्तविक ज्ञान सुनाने का निवेदन करते हैं। हमें भी किसी को जैसा हम जानते हैं वैसा ही कहना चाहिए, अपने मन के अनुसार सोचकर नहीं। सुधर्मास्वामी उन्हें पुच्छीशुणं के द्वारा परमात्मा का वास्तविक ज्ञान वात्सलयपूर्वक प्रदान करते हैं।
वे कहते हैं कि तीर्थंकरों का क्षेत्रज्ञान कुशल है, वे जानते हैं कि किस व्यक्ति को किस प्रकार धर्म दिया जा सकता है, उसी प्रकार वे उसे प्रदान करते हैं। क्षेत्र को जानने वाला ही सही भूमि पर सही बीजों को बोता है। दूसरों का जीवन बदल देनेवाले ही तीर्थंकर होते हैं। उनका विजन अनन्त होता है। सुधर्मास्वामी कहते हैं कि परमात्मा को यदि जानना है तो उनके धर्म और धीरज को जानें, उसको ग्रहण करें।
संगमदेव के लगातार छह मास तक भयंकर उपसर्ग करने पर भी परमात्मा का धीरज अटल रहा। उसके प्रति उनके मन में तनिक भी भाव नहीं बदले। उपसर्ग और कष्टों को झेलने की दृष्टि से देखें तो पूर्व के तेईस तीर्थंकरों से भी भगवान महावीर का पलड़ा ज्यादा भारी रहेगा। उनका धीरज और धर्म अनन्त है।
१२ नवम्बर को एएमकेएम ट्रस्ट में अर्हम विजा फाउंडेशन के केन्द्र का उद्घाटन किया जाएगा।

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