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ज्ञान वाणी

परमात्मा के करीब जाने के लिए दिल से सेवा भाव की जरूरत: उपप्रवर्तक विनयमुनि

परमात्मा के करीब जाने के लिए दिल से सेवा भाव की जरूरत: उपप्रवर्तक विनयमुनि

चेन्नई. टी. नगर में बर्किट रोड स्थित माम्बलम जैन स्थानक में विराजित उपप्रवर्तक विनयमुनि के सान्निध्य में गौतममुनि ने कहा परमात्मा का जिनशासन प्राणी मात्र के कल्याण के लिए होता है। जीवन को गुणवान बनाने के लिए देवगुरु के चरणों में बैठ कर जीवन के मूल्यों को समझने की जरुरत है।

जिनको जीवन का मूल्य समझ में आ जाता है वे परमात्मा की प्रार्थना, स्तुति और वंदना अपने अंतकरण से करने लगते है। बिना किसी अपेक्षा के ही परमात्मा के पास जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा जीवन को परमात्मा जैसे बनाने के लिए खुद के मन को उनके चरणों में लगाना चाहिए। परमात्मा के चरणों में बैठकर गुरुवाणी जीवन में उतारने के बाद ही जीवन में सफलता मिलेगी।

जब मनुष्य परमात्मा के गुणों को जीवन से जोडऩेे का प्रयास करता है तो उसकी भक्ति और प्रार्थना सफल हो जाती है। उन्होंने कहा परमात्मा के प्रति सच्चे भाव होने पर परमात्मा स्वयं ही ऐसे भक्त के पास चल कर आ जाते है। मनुष्य को कोई भी कार्य दिल से करने की जरूरत होती है अन्
मन, वचन और काया से परमात्मा की पूजा और सेवा करना चाहिए।

ऐसा सेवा भाव रखने वाले मनुष्य परमात्मा के नजरों में हर पल रहते हैं। अगर मनुष्य खुद को परमात्मा के नजरों में आगे देखना चाहता है तो उसे भी ऐसे ही सेवा भाव करने की जरूरत है। सागरमुनि ने कहा कि मनुष्य को चारित्र और तप इसी भव में मिलेगा, इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए। ज्ञान की आराधना के साथ चारित्र की आराधना भी करनी चाहिए क्योंकि मनुष्य भव में ही चारित्र का आराधना करना संभव है।

यह जीवन एक बार गया तो वापस लौट कर नहीं आएगा। इस भव को सुधारने के लिए अपनी दृष्टि को सुधारना होगा। जब तक दृष्टि नहीं सुधरेगी तब तक सृृष्टि नहीं सुधर पाएगी। मनुष्य की आत्मा ही उसके सुख दुख का कारण है।

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