चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा कि जगत के समस्त जीवों के दुखों को जानकर परमात्मा ने सुखी के मार्ग गठित किए हैं। परमात्मा की वाणी सुनने वाले मनुष्य को जीवन में नए मार्ग मिलते है। वाणी प्रत्येक जीवों को शांति प्रदान करने वाली होती है। इससे जीवन को हल्का बनाने की प्रेरणा भी मिलती है।
उन्होंने कहा मनुष्य ने पाप करते हुए आत्मा को भारी बनाने का कार्य तो बहुत किया। अब उस भारी पन को हल्का करने के लिए परमात्मा की वाणी सुनने की जरूरत है। प्रवचन में उपस्थित होकर वाणी सुनने से जीवन में विवेक जागृत होता है। इसके बाद मनुष्य को पाप और पुण्य के भेद अपने आप ही पता चलने लगते हंै। जिससे वे पाप के मार्गो को त्याग कर पुण्य के मार्गो पर चलने की कोशिश करने लगता है। उन्होंने कहा धर्म मनुष्य के विवेक में रहता है।
मनुष्य जितना अपने विवेक का इस्तेमाल कर कार्य करता है उतना ही वे पाप से बचता है। धर्म से जीवन को जोडऩे के लिए परमात्मा की वाणी का आश्रय लेते रहना चाहिए। क्योंकि बिना इसके जीवन में आगे बढऩे का मौका नहीं मिल सकता है। जिस प्रकार से उपर जाने के लिए सिढ़ी का इस्तेमाल किया जाता है। उसी प्रकार से पुरुषार्थ कर ऊपर उठने के लिए गुरु भक्ति की जरूतर होती है।
नीचे गिरने में समय नहीं लगता, बल्कि उपर उठने में जीवन लग जाता है। उन्होंने कहा जरूरत पडऩे पर किसी मनुष्य को निराश नहीं करना चाहिए। क्योंकि खिलाना उसी को चाहिए जिसको उसकी जरूरत हो। जिसे जरूरत नहीं उसे खिलाने से कोई लाभ नहीं मिल सकता है। सागरमुनि ने भी उद्बोधन दिया। विनयमुनि ने मंगलपाठा सुनाया।