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परमात्मा की भाव भक्ति कर राजा बनकर जीएं : डॉ. वसंतविजयजी म.सा.

परमात्मा की भाव भक्ति कर राजा बनकर जीएं : डॉ. वसंतविजयजी म.सा.
इंदौर। हृींकारगिरी तीर्थ धाम में दिव्य भक्ति चातुर्मास कर रहे विश्व शांतिदूत डॉ. वसंतविजयजी म.सा. की पावनकारी प्रेरणा एवं निश्रा में इंदौर स्थित समग्र जैन श्वेताम्बर मंदिरजी के पुजारीजी, उपाश्रय/स्थानक/तेरापंथ भवन के मुनिमजी, 22 स्थानकों में 48 सेवादारों आदि जो कि जिनशासन में बहुत ही कम शुल्क में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान कर रहे हैं ऐसे सभी पुण्यशालीयों का बहुमान समारोह रविवार को आयोजित किया गया।
मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार हुए इस ऐतिहासिक, दिव्य, अलौकिक बहुमान समारोह में 200 से अधिकजनों को 51 विभिन्न प्रकार की सामग्री प्रदान की गयी। 
मन्त्र शिरोमणि, यतिवर्य, राष्ट्रसंत डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने पर्यूषण पर्व के सातवें दिवस रविवार को कहा कि परमात्मा की भाव भक्ति करते हुए राजा बनकर जीएं। जो भी पुण्य में लिखा है वह मिलकर ही रहेगा।
श्री नगीन भाई कोठारी चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में दिव्य भक्ति चातुर्मास कर रहे डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने यह भी कहा कि जो भी माता-पिता अपने बच्चों में धर्म का संस्कार, अहिंसा का संस्कार डालते है सच्चे अर्थों में वे ही अच्छे माता-पिता कहलाएंगे। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कारों से ही परिवार संस्कारित बनता है इसलिए संस्कारवान बनें और दूसरों को भी प्रेरणा दें।
डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने बोले, मन में करुणा, दया, ममता के भाव होने जरुरी है तभी बेहतर इंसान बनने की ओर अग्रसर होंगे। भाई-भाई के प्रेम संबंधी चर्चा पर विशेष प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि यदि अपने भाई की यश, कीर्ति से खुश नहीं है तो किसी के सामने अपमान भी नहीं करना चाहिये। यदि ऐसा करेंगे तो अपने ही भाई की बुराई कर आप अपना ही हाथ काटोगे।
भाई को न केवल इज्जत देनी चाहिए, बल्कि उनके द्वारा किए गए कार्यों का गुणगान करना चाहिए तभी जीवन में परिवर्तन का भी अहसास होगा। शुभ कर्म, भावना की ही सोचने की भी उन्होंने प्रेरणा दी। ट्रस्टी जय-विजय कोठारी ने बताया कि हृींकारगिरी तीर्थ धाम में प्रतिष्ठापित मूलनायक परमात्मा पार्श्वनाथजी की प्रतिमा का विधिकारक हेमंत वेदमूथा मकशी द्वारा 50 दिवसीय 18 अभिषेक रविवार को भी जारी रहा।
उन्होंने बताया कि कर्नाटक, चैन्नई, गुजरात, राजस्थान सहित अनेक जगहों से चातुर्मास प्रवासित डॉ. वसंतविजयजी म.सा. से दर्शन, प्रवचन व मांगलिक श्रवण का लाभ लेने वालों में शामिल थे।

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